केदारनाथ त्रासदी के रूप मे जिन्होने अपना रोद्र रूप दिखाया : माँ धारी देवी
राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर लगा एक खूबसूरत बोर्ड |
राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर स्थित होने के कारण यहाँ पहुँचना काफी सरल है। मुख्य सड़क के दोनों ओर पूजन सामग्री से सजी छोटी छोटी दुकानों को देखते ही समझ आ जाता है कि हम किसी देवस्थल पर पहुँच गए हैं।यात्रियो को मुख्य मंदिर पहुँचने के लिए कलियासोड से लगभग 500 मीटर नीचे उतरना पड़ता है। नीचे उतरकर भक्तजन एक लोहे के जंगलेनुमा पुल को पार कर अलकनंदा के बीच बने धारी देवी मंदिर मे प्रवेश करते हैं। पहले यह मंदिर अलकनंदा की मुख्य धारा के बीच एक बड़ी सी शिला के ऊपर स्थित था। किन्तु 330 मेगावाट के हाइडेल प्रोजेक्ट के निर्माण हेतू 2013 मे माँ धारी देवी की मूर्ति को अपने मूल स्थान से उठाकर ऊपर लाया गया।
माँ अलकनंदा पर 330 मेगावाट का हाइडेल प्रोजेक्ट |
लोकमान्यता के अनुसार माँ धारी देवी को इस क्षेत्र की रक्षक देवी के रूप मे पूजा जाता है। लोगों के विरोध के बावजूद माँ की मूर्ति को 16 जून 2013 की शाम के लगभग 7 बजे पुजारियों एंव क्षेत्रीय लोगो की सहायता से ऊपर एक नवनिर्मित मंदिर मे स्थानांतरित कर दिया गया।
मुख्य मंदिर तक पहुँचने का मार्ग |
ये माँ का प्रकोप ही था कि इसके कुछ ही घंटो पश्चात देवाधिदेव महादेव कैलाशपति का रोद्र रूप इस घाटी को देखने को मिला। माँ रुष्ट हुईं,जिस कारण इस क्षेत्र मे जल तांडव से भयंकर त्रासदी हुई। इस आपदा मे कई हज़ार लोगों को अपनी जान गवानी पड़ी। मौसम विभाग के अनुसार साधारणतः इस क्षेत्र मे जून माह मे लगभग 70 मिलिमीटर बारिश होती है किन्तु मूर्ति हटने के बाद उस माह 300 मिलिमीटर बारिश हुई जोकि महा विनाश का कारण बनी। सन्न 1882 मे एक स्थानीय राजा ने मूर्ति हटाने की केवल कोशिश की थी जिससे उस समय भी भयंकर बाढ़ आई थी। उसके पश्चात अब तक किसी ने भी मूर्ति हटाने की हिम्मत नहीं की। मंदिर के भीतर देवी माँ की श्यामवर्ण मूर्ति स्थापित है। जनमान्यतानुसार माँ का ऊपरी हिस्सा यहाँ तथा निचला भाग काली मठ मे स्थित है। भक्तों का मानना है कि यहाँ दिन मे माँ धारी देवी के तीन स्वरूपों के दर्शन होते हैं।जिसमे माँ प्रातः काल बालस्वरूप,दोपहर मे युवास्वरूप तथा सायंकाल मे वृद्धा स्वरूप मे दिखाई देती हैं।
भक्तों द्वारा बाँधी गयी घंटियाँ |
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