Saturday 4 March 2017

जहाँ रात मे निकलती है माँ की डोली - 

                       हरियाली देवी 

सिद्धपीठ हरियाली देवी मंदिर 
इसमे कोई शक नही कि भारत की आत्मा तीर्थों मे वास करती है। नास्तिक से नास्तिक व्यक्ति भी इन तीर्थस्थलों पर पहुँचकर यहाँ के आध्यात्मिक वातावरण से वशीभूत होकर थोड़ी बहुत पूजार्चना एंव कर्मकांड कर ही लेता है। जाने अनजाने इन पवित्र स्थलों मे की गयी थोड़ी सी भी पूजार्चना जन्म जन्मांतर  के पापों को नष्ट करने मे सक्षम है। देवात्मा हिमालय का हरेक कण स्वयं मे आलौकिक है। यहाँ की हरियाली का तो कहना ही क्या। इसी हरियाली से सराबोर दिव्य सिद्ध पीठ है - हरियाली देवी। इस पवित्र स्थान पर पहुँचने के लिए यात्रियो को राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर रुद्रप्रयाग गोचर के बीच स्थित नगरासू गाँव पहुँचना होता है। यहाँ से नवनिर्मित सड़क द्वारा लगभग 25 किमी. की दूरी पर है जसोली गाँव, जहाँ पर स्थित है माँ हरियाली देवी का सुप्रसिद्ध मंदिर। 
नवनिर्मित नगरासू-जसोली सड़क मार्ग 

इस स्थान पर माँ को बालासुन्दरी के रूप मे पूजा जाता है। माँ हरियाली देवी मंदिर मे मुख्य तीन प्रतिमाएँ स्थापित हैं - माँ हरियाली देवी,क्षेत्रपाल एंव हित्त देवी। मंदिर परिसर मे ही अन्य कई देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी शोभायमान हैं। पुजारी जी भक्तों द्वारा लायी गयी पूजन सामग्री बड़े ही श्रद्धाभाव के साथ माँ को समर्पित करते हैं। दीपावली से एक दिन पूर्व इस मंदिर परिसर से एक अलौकिक देवी यात्रा की शुरुआत होती है। यहाँ से 8 किमी. की दूरी पर स्थित है हरियाली कांठा। समुन्द्र तल से लगभग दस हज़ार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह स्थान घने जंगलों से घिरा है।

हरियाली कांठा क्षेत्र की हरियाली 

लोगों का विश्वास है कि हरियाली कांठा माँ हरियाली देवी का मायका तथा जसोली गाँव माँ का ससुराल है। इसी लिए माँ की चल मूर्ति को एक दिन के लिए ससुराल से मायके ले जाने की परम्परा है। दीपावली से एक दिन पूर्व विशेष पूजार्चना के पश्चात माँ हरियाली देवी की चल मूर्ति को गर्भ ग्रह से निकालकर बड़ी ही सुन्दर डोली मे सजाया जाता है। रात्रि के समय माँ की डोली यात्रा आरंभ होती है जिसमे हजारों की संख्या मे देवीभक्त शामिल होते हैं। इस यात्रा मे महिलायें सम्मिलित नहीं होती। 8 किमी. पैदल खड़ी चड़ाई के पश्चात भोर की किरणों के साथ जब माँ की डोली हरियाली कांठा पहुँचती है तो वहाँ का नज़ारा देखने योग्य होता है। जनमान्यता के अनुसार जब कंस द्वारा देवकी की सातवीं संतान महामाया को धरती पर पटका गया, तब महामाया का शरीर अलग-अलग भागों मे खंडित हो गया तथा उनका हाथ इस पवित्र हरियाली कांठा मे गिरा,तभी से यह स्थान सिद्धपीठ कहलाया। श्रद्धालु भक्त हरियाली कांठा मे माँ की पूजार्चना के बाद ही दीपावली का पर्व मनाते हैं। मार्ग कठिन होने के कारण भक्तजन सम्पूर्ण वर्ष जसोली गाँव मे स्थित मंदिर मे ही माँ हरियाली देवी की पूजार्चना करते हैं।

हरियाली से भरपूर जसोली गाँव 

जसोली एक छोटा सा गाँव है, जिस कारण यहाँ ठहरने के लिए किसी भी होटल अथवा लॉज की व्यवस्था नहीं है। गढ़वाल मण्डल विकास निगम का एक टूरिस्ट रेस्ट हाउस है जो प्रायः बन्द रहता है। मंदिर परिसर मे ही एक छोटी सी धर्मशाला मे कुछेक कमरे यात्रियो के ठहरने के लिए बने हुए हैं।

 
जसोली गाँव के समीप  प्रकृतिक झरना  

मेरा परम सौभाग्य रहा कि जब हम इस सिद्ध पीठ की यात्रा के लिए गये तो यहाँ के मुख्य पुजारी श्री सचिदानन्द चमोली जी ने स्वयं मुझे परिवार सहित अपने घर पर ही रुकने का आमंत्रण दिया। पहले तो हमे कुछ संकोच हुआ किन्तु गाँव के महोल मे रहने का इतना स्वर्णिम अवसर खोना एक महामूर्खता होती। एक रात विश्राम मे ही सचिदानन्द जी द्वारा किए गये अतिथि सत्कार के आगे हम  नतमस्तक हो गये। जय माँ हरियाली देवी।  

मंदिर मे पुजारी जी के साथ लेखक 



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