Wednesday 11 July 2018

           फिल्मी नगरी ही नहीं मन्दिरों का भी शहर है :  मुम्बई 

समुन्द्र से गेटवे ऑफ़ इंडिया की तस्वीर 

भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई देश के चार महानगरों में से एक है। सपनों की इस नगरी को देखने की लालसा बच्चों से वृद्धों तक सभी में देखने को मिलती है। यहाँ का बॉलीवुड सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। किन्तु हम आपको इस नगरी के दूसरे स्वरुप मन्दिरों की नगरी से अवगत कराते हैं।



होटल ताज का बाहरी नज़ारा 

मुंबा देवी -  मुम्बई के भूलेश्वर में स्थित है मुंबा देवी मन्दिर। मराठी भाषा के मुंबा आई अर्थात मुंबा माता के नाम से ही इस नगरी को मुम्बई नाम मिला। लगभग 400 वर्ष पुराने इस मन्दिर  में भक्तों की असीम आस्था देखने को मिलती है।  मान्यता है कि माँ यहाँ आने वाले भक्तों के सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न करती है।  शेर पर सवार माँ मुंबा देवी के नारंगी चेहरे का तेज सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। रजत मुकुट, नाक की लोंग तथा सोने के हार से किये गये श्रृंगार से मूर्ति की शोभा पर चार चाँद लग जाते हैं।  माँ लक्ष्मी के स्वरुप माँ मुंबा देवी के अगल-बगल माँ अन्नपूर्णा तथा माँ जगदम्बा की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर में प्रतिदिन 6 बार माँ की आरती का विधान है।  देवी का भोग मंदिर की ऊपरी मंज़िल पर स्थित रसोई में बनाया जाता है।  मुंबा देवी का वाहन प्रतिदिन बदला जाता है तथा सभी वाहन चाँदी से निर्मित होते हैं।

बाबुलनाथ मन्दिर 

बाबुलनाथ मन्दिर  -  मालाबार हिल्स पर स्थित बाबुलनाथ मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। मन्दिर तक पहुँचने के लिए मेन रोड से अन्दर की तरफ थोड़ा सा पैदल चलना पड़ता है। मार्ग के दोनों तरफ पूजन सामग्री की कुछेक दुकाने सजी हुई हैं। जिनसे भक्त पूजा की थाली लेकर आगे बढ़ते हैं।  बाजार में पुरानी इमारतें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इमारतों के बीच से गुजर रहे हैं। छोटी सी पहाड़ी पर स्थित लगभग 200 वर्ष पुराने इस मन्दिर में पहुँचने के लिए भक्त सीढ़ियों अथवा लिफ्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं।  लगभग 110 सीढ़ियाँ चढ़ना अथवा लिफ्ट जैसी आधुनिक सेवा का प्रयोग करना भक्तों पर निर्भर करता है। समुन्द्र तल से लगभग 1000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से अरब सागर के नज़ारे देखने को मिलते हैं। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु मुख्य गर्भ गृह में स्थित बड़े से शिवलिंग की पूजार्चना कर भगवान बाबुलनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।



महालक्ष्मी मन्दिर - मुंबई के सर्वाधिक प्राचीन धर्मस्थलों में से एक महालक्ष्मी मन्दिर भूलाभाई देसाई मार्ग पर स्थित है।  कहा जाता है कि सन्न 1831 में वरली तथा मालाबार हिल्स को जोड़ने का निर्माण कार्य चल रहा था। ब्रिटिश सरकार के अथाह प्रयास के बावजूद दीवार बनते ही ढह जाती थी। तब प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर (जोकि एक भारतीय थे) के सपने में माँ लक्ष्मी ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वरली के पास समुन्द्र के समीप तुम्हें मेरी मूर्ति मिलेगी। खोज करने पर माता की मूर्ति मिलने के पश्चात् इसी जगह पर मन्दिर का निर्माण कराया गया जिसके पश्चात् ब्रिज का निर्माण कार्य बड़ी आसानी से सम्पन्न हो गया। समुन्द्र के किनारे स्थित होने के कारण मन्दिर की सुन्दरता कई गुणा बढ़ जाती है। मन्दिर  के बाजार में माँ को अर्पित करने लिए चुनरी, फूल माला, पूजन सामग्री तथा मिष्ठान की कई दुकाने सुसज्जित हैं।  कमल का पुष्प माँ महालक्ष्मी को सर्वप्रिय है जिसे अपनी थाली में सजाकर भक्तजन माँ के चरणों में अर्पित  कर बड़ी आसानी से मनवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। मन्दिर के भीतर माँ महालक्ष्मी, माँ सरस्वती एंव माँ काली की मूर्तियाँ सुसज्जित हैं।  तीनो मूर्तियों के गले में मोतियों से जड़ित हार, हाथों में सोने की चूड़ियाँ तथा नाक में नथ भक्तों को आकर्षित करती हैं।  शेर पर सवार होकर महिषासुर का वध करते हुए महालक्ष्मी भक्तों को दर्शन देती हैं। तीनों देवियों के असली स्वरुप सोने के मुखोटों से ढके रहते है।  प्रतिदिन शयन से  कुछ देर पहले मुखोटे हटा दिए जाते हैं। केवल उसी समय भक्त माँ के असली स्वरुप के दर्शन पा सकते हैं। प्रातः काल अभिषेक के पश्चात् पुनः सोने के मुखोटे मूर्तियों पर चढ़ा दिए जाते हैं।

सिद्धिविनायक मंदिर 

सिद्धिविनायक मंदिर -  मुम्बई  के प्रभादेवी में स्थित श्री सिद्धिविनायक मन्दिर का निर्माण सन्न 1801 में किया गया था।  भगवान गणेश को समर्पित यह मंदिर देश-विदेश में विख्यात है। अन्य मन्दिरों  के मुक़ाबले यहाँ सिक्यूरिटी कुछ ज्यादा ही देखने को मिलती है। मन्दिर के बाहर बनी पूजनसामग्री एंव मिठाई की दुकानों से भगवान गणेश को प्रिय मोदक खरीदकर भक्त आगे बढ़ते हैं। सिक्यूरिटी चेकिंग से कुछ आगे चलकर बायीं ओर  का मुख्य द्वार है। 200 वर्ष पुराने इस मन्दिर में लगभग 10 फ़ीट चौड़े एंव 13 फ़ीट ऊँचे गर्भ गृह में चबूतरे पर स्वर्ण शिखर वाला चाँदी का सुन्दर मंडप है जिसपर भगवान सिद्धिविनायक विराजित हैं। अष्टभुजी गर्भगृह में भक्तों के लिए 3 दरवाजे हैं, जिनपर विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हुई हैं। आमतोर पर लोग बायीं ओर मुड़ी सूंड वाले गणपति जी की पूजार्चना किया करते हैं। दायीं ओर मुड़ी सूंड वाली प्रतिमाओं को सिद्धपीठ माना जाता है। यहाँ भी गणेश जी की सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई है। इसीलिए इस स्थान को सिद्धपीठ माना गया है।


इस्कॉन  -   इस्कॉन के नाम से विख्यात यह मन्दिर मुंबई शहर में जुहू बीच के समीप स्थित है। लगभग 4 एकड़ में फैला श्री राधा रस बिहारी आस्था सखी मन्दिर राधा कृष्ण तथा राधा की सखियों को समर्पित है।  भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा स्थापित इस्कॉन संस्था के अंतर्गत निर्मित इस मन्दिर में श्री श्री गोरा निताई, श्री श्री राधा बिहारी तथा सीता-राम-लक्ष्मण संग हनुमान जी की मूर्तियों को  देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। मन्दिर  परिसर में स्थित रेस्तरां में आप शुद्ध शाकाहारी व्यंजनों का लुत्फ़ उठा सकते हैं।          


एलिफेंटा केव्स 

एलिफेंटा केव्स - मुम्बई के गेटवे ऑफ़ इंडिया से लगभग 10 किमी. समुन्द्र के बीच छोटा किन्तु अत्यन्त सुन्दर टापू है - धरापुरी, जिसे गुफाओं का टापू भी कहा जाता है। यह अलौकिक स्थान अरब सागर में स्थित है। यहाँ एक समूह में पाँच हिन्दू गुफाएँ भगवान शिव को समर्पित हैं तथा दूसरे समूह में दो गुफाएँ भगवान बुद्ध को समर्पित हैं। एलिफेंटा पहुँचने के लिए पर्यटकों को मुम्बई के सुप्रसिद्ध गेटवे ऑफ़ इंडिया से हर एक-आध घंटे में स्टीमर्स मिल जाते हैं। लगभग 50 मिनट में स्टीमर समुन्द्र की लहरों के साथ अठखेलियाँ करता हुआ आपको विश्व धरोहर एलिफेंटा केव्स पहुँचा देगा।








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