Saturday, 28 January 2017

विश्व का सार्वधिक ऊँचाई पर स्थित शिव मंदिर : तुंगनाथ 

तृतीय केदार श्री तुंगनाथ मन्दिर  

मनुष्य का मन कभी भी स्थिर नहीं रहता। नये नये स्थानों को देखने की अभिलाषा सदैव ही इंसान को घुमक्कड़ी के लिए प्रेरित करती है। चाहे तीर्थयात्रा हो या पर्यटन मनुष्य का मकसद मन की शान्ति प्राप्त करना होता है। मन की इसी शान्ति को प्राप्त करने के लिए हम आपको आज लिए चलते हैं विश्व के सबसे ऊँचाई पर स्थित मंदिर तुंगनाथ की ओर। 

ऊखीमठ-चोपता मोटर मार्ग 

ऊखीमठ गोपेश्वर मोटर मार्ग पर स्थित चोपता से लगभग 4 किमी. की दूरी पर स्थित है तृतीय केदार "श्री तुंगनाथ जी"। उत्तरांचल के मिनी स्विट्ज़रलैंड के नाम से विख्यात चोपता एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है। यहाँ के हरे-भरे घास के मैदान जिन्हे बुग्याल कहा जाता है यात्रियो को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यहाँ यात्रियो के रहने के लिए गढ़वाल मण्डल विकास निगम का विश्राम ग्रह,होटल व अच्छे लॉज उपलब्ध हैं। पर्यटन की दृष्टि से जो लोग 1-2 दिन यहाँ रहना चाहें उनके लिए आस-पास कई दर्शनीय स्थल हैं। हिमालय की मीलों फैली हरी-भरी घाटियों मे एक ऐसा आकर्षण है कि घुमक्कड़ लोग बार बार यहाँ आने को लालायित रहते हैं। उत्तरांचल मे स्थित पंच केदारों मे तृतीय केदार के रूप मे पूज्यनीय श्री तुंगनाथ जी ही एक ऐसा स्थान है जहाँ पहुँचने के लिए सबसे कम केवल 4 किमी. का पैदल मार्ग तय करना होता है। पहाड़ी पत्थरों से बना यह मार्ग काफी सुविधाजनक है।

घोड़े पर सवार तुंगनाथ जाते तीर्थयात्री 

पैदल चलने मे असमर्थ तीर्थयात्री तुंगनाथ तक घोड़े भी कर सकते हैं। ये घोड़ेवाले 5-6 घंटे मे तीर्थयात्रियों को तुंगनाथ दर्शन करवाकर वापसी चोपता ले आते हैं। चार धाम यात्रा के समय काफी संख्या मे तीर्थयात्री चोपता मे अपने वाहन खड़े कर इन घोड़ेवालों की सहायता से तुंगनाथ दर्शन करते हैं तथा वापसी चोपता आकर अपनी आगे की यात्रा पुनः आरम्भ करते हैं। मुख्य सड़क मार्ग से थोड़ा आगे बढ़ने पर बुरास के वृक्षों से घिरा वन आरम्भ हो जाता है। यात्री फूलती हुई साँस के साथ प्रकृति का आनंद उठाते हुए तुंगनाथ जी की ओर बढ़ते हैं। लगभग 1-2 किमी. आगे बढ़ने पर बाईं ओर एक हरा-भरा घास का मैदान है। यहाँ खड़े होकर दूर दूर तक जिस तरफ दृष्टि डालो हरे भरे वृक्षो से आछन्दित घाटियाँ ही नजर आती हैं। यहाँ के बुगयालों मे आस पास के स्थानीय निवासी भी एक दिन की पिकनिक मनाने आते हैं। मार्ग मे कई स्थानों पर झोपड़ीनुमा दुकाने हैं जहाँ रुककर यात्री जलपान करते हैं तथा मैगी के शौकीन लोग इन दुकानों मे माउंटेन मैगी का लुल्फ भी उठाते हैं। 


गर्मा गर्म मैगी का लुत्फ उठाते बच्चे 

जलपान और कुछ विश्राम करने के उपरान्त तीर्थयात्री लगभग एक डेढ़ घंटे मे तुंगनाथ जी पहुँच जाते हैं। समुन्द्रतल से लगभग 3750 मीटर की ऊँचाई पर स्थित श्री तुंगनाथ मंदिर तृतीय केदार के रूप मे पूज्यनीय है। भक्तों द्वारा इस पावन स्थान पर भगवान आशुतोष शिव के बाहु रूप की पूजा की जाती है। तुंग शब्द का अर्थ है सबसे ऊँचा। यह मंदिर भगवान शिव के सभी मंदिरों मे सबसे अधिक ऊँचाई पर स्थित होने के कारण ही तुंगनाथ के नाम से प्रसिद्ध है। जनमान्यता है कि पंच पाँडवों ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। बड़े बड़े पत्थरों को तराश कर बनाया गया यह मंदिर लगभग 36 फुट ऊँचा है। धर्म ग्रन्थों के अनुसार सप्त ऋषियों ने इस क्षेत्र मे कठोर तपस्या द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इसी वजह से मंदिर के बाईं ओर स्थित सप्त ऋषि कुंड के जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है। लगभग 25-30 सीढ़ियाँ चढ़कर मुख्य तुंगनाथ मंदिर स्थित है। यहाँ पर तीर्थयात्रियों को उदक कुंड के दर्शन होते हैं। यहाँ से भक्तजन जल लेकर मंदिर के गर्भ ग्रह मे प्रवेश करते हैं। 


तुंगनाथ मन्दिर का प्रवेश द्वार  

मंदिर के भीतर एक फुट ऊँचे पिंडाकार शिवलिंग की पूजार्चना भक्तों द्वारा बड़े ही श्रद्धा भाव से की जाती है। अपनी स्वर्गारोहण यात्रा के समय पाण्डव पुत्रों ने इस मंदिर का निर्माण किया था जिस कारण मन्दिर परिसर मे कुन्ती एंव द्रौपदी सहित पांचो पांडवों की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मन्दिर के ठीक सामने नंदीगण की छोटी सी मूर्ति प्रतिष्ठित है। दायीं ओर स्थित एक छोटे से मन्दिर मे माँ पार्वती की अत्यन्त प्राचीन मूर्ति स्थापित है। शहरों की भीड़ भाड़ से कोसों दूर इस शान्त एकान्त स्थान पर पहुँच कर तीर्थयात्रियों एंव सैलानियों को स्वर्गिक अनुभूति होती है। शीतकाल मे इस सम्पूर्ण क्षेत्र के बर्फ से ढक जाने पर भगवान तुंगेश्वर महादेव की पूजार्चना चोपता से लगभग 10 किमी. दूर मक्कू मठ गाँव मे मिठानी ब्राह्मणो द्वारा की जाती है। तुंगनाथ मन्दिर से लगभग डेढ़ किमी. की खड़ी चड़ाई चढ़ने के पश्चात चन्द्र्शिला नामक स्थान आता हैं, जिसे मून रॉक भी कहा जाता है। जनमान्यता है कि प्रभु श्री राम ने रावण वध के पश्चात भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए इसी स्थान पर कठोर तप किया था। यहाँ एक नवनिर्मित मन्दिर स्थापित है जिसमे भगवान श्री राम की मूर्ति शोभायमान है। चन्द्र्शिला से नन्दा देवी, पंचचूली,द्रोणांचल , बद्रीनाथ,रुद्रनाथ, चौखम्बा आदि अनेक दुग्ध धवल मनोरम चोटियाँ दृष्टिगोचर होती है।

नागधिराज हिमालय की बर्फीली चोटियाँ 

मनुष्य का प्रकृति से साक्षात्कार कराता यह स्थान ईश्वर की अनूठी देन  है। तुंगनाथ पहुँचने के लिए दो मार्ग उपलब्ध हैं। प्रथम मार्ग द्वारा यात्री राष्ट्रीय राजमार्ग 58 से होते हुए ऋषिकेश, गोपेश्वर होकर चोपता पहुँच सकते हैं जोकि लगभग 250 किमी. है। द्वितीय मार्ग ऋषिकेश से ऊखीमठ होकर चोपता पहुंचता है जोकि लगभग 215 किमी. है। 


सम्पूर्ण भारत के रहस्यमयी, रोमांचमयी, पर्यटन एंव धार्मिक तीर्थस्थलों के विषय मे पढ़ने के लिए हमारे ब्लॉग पोस्ट annupuneetmahajan.blogspot.com पर follow करें। 


No comments: