Monday 4 September 2017

 रहस्यमयी मन्दिर जहाँ नहीं टिक पाती छत :  शिकारी देवी

माँ शिकारी देवी मन्दिर 

सम्पूर्ण विश्व में देवात्मा हिमालय अपनी अपूर्व प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है। इसी हिमालय में स्थित देव भूमि हिमाचल में अनेकों ऐसे प्राकृतिक देव स्थल विद्यमान हैं जो स्वयं में कई रहस्य समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक रहस्यमयी एंव अलौकिक देव स्थल है - माँ शिकारी देवी। महृषि मार्कण्डेय ने इस सुन्दर स्थान पर कई वर्षों  तप किया जिससे प्रसन्न होकर माँ यहीं विराजमान हो गयीं। प्राचीन मान्यता के अनुसार पाण्डव पुत्रों ने अपने बनवास काल में माँ को प्रसन्न करने हेतू यहाँ मंदिर का निर्माण किया था। मन्दिर तो बन गया किन्तु किसी कारणवश छत का निर्माण करने से पूर्व ही उन्हें यहाँ से पलायन करना पड़ा।  कहा जाता है कि तभी से देवी प्रकोप  के कारण यहाँ कई बार कोशिश करने के बावजूद छत निर्माण का कार्य सम्पन्न नहीं हो पाया। मन्दिर के आस-पास कई सराय निर्मित हैं,जिनपर छत बनाना आसान था किन्तु मंदिर पर छत बनने से पहले ही ढह जाने का सिलसिला हर बार जारी रहा।  शरद ऋतु में यह सम्पूर्ण क्षेत्र 10-15 फुट बर्फ से ढक जाता है। किन्तु यह माँ का चमत्कार ही है कि शिकारी देवी मन्दिर परिसर में बर्फ नहीं टिक पाती। विज्ञान भी आज तक इन चमत्कारों को चुनोती नहीं दे पाया।

प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण क्षेत्र 

प्राचीन काल में अत्याधिक घना वन क्षेत्र होने के कारण शिकारी शिकार पर जाने से पूर्व माँ का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते थे। उनका यह मानना था कि माँ का आशीर्वाद लेकर शिकार पर जाने से सफलता अवश्य मिलेगी। जिससे कालान्तर में मन्दिर में प्रतिस्थापित माँ दुर्गा का नाम शिकारी देवी पड़ गया। समुन्द्र तल से लगभग 11000 फुट की ऊँचाई पर शिकारी देवी का मन्दिर मंडी जिले में चौहार घाटी के एक उच्च शिखर पर स्थापित है।  माँ के इस छोटे से मंदिर में कई देवी-देवताओं की पाषाण  मूर्तियाँ स्थापित हैं। यहाँ आये भक्तजन बड़े ही श्रद्धाभाव से पूजार्चना कर माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।


मन्दिर परिसर में पाषाण मूर्तियाँ 

काफी ऊँचाई पर स्थित होने के कारण  इस क्षेत्र को मंडी क्षेत्र का ताज भी कहा जाता है।  यहाँ से चारों ओर दृष्टि डालने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम बादलों में विचरण कर रहे हों।  शिकारी देवी मंदिर पहुँचने के लिए तीर्थयात्रिओं एंव प्रकृति प्रेमिओं को सर्वप्रथम हिमाचल जिले के मंडी शहर पहुँचना पड़ता है।  मंडी शहर से बस अथवा निजी वाहन द्वारा चैल चौक, बगस्याड, थुनाग होते हुए 75 किमी. दूर जन्जैहली पहुँचा जाता है। जन्जैहली कस्बे से लगभग २ किमी. आगे बायीं ओर 8-10 सीढ़ियाँ नीचे उतरकर एक विशाल शिला दिखाई पड़ती है,जिसे पाण्डव शिला के नाम से जाना जाता है। इतनी विशाल एंव भारी भरकम शिला को हिलाने  का ख्याल भी दिल-दिमाग में नहीं लाया जा सकता। आपको जानकार हैरानी होगी कि आप अपने हाथ की सबसे छोटी ऊँगली से भी इसे हिला सकते हैं। स्थानीय निवासी इसे पवित्र शिला  मानते हैं।  

                                                               

पाण्डव शिला 

जन्जैहली छोटा किन्तु सुन्दर क़स्बा है। प्रकृति ने इस स्थान को अमूल्य सुन्दरता प्रदान की हुई है। यहाँ यात्रियों के ठहरने हेतू हिमाचल टूरिज्म का ट्रेकर हॉस्टल एंव निजी होटल हैं। जन्जैहली से शिकारी देवी तक  सम्पूर्ण मार्ग वन विभाग के अंतर्गत आता है।

रायगढ़ 

मार्ग अति संकरा होने के कारण केवल छोटे वाहन ही मंदिर तक जा पाते हैं।  वाहन पार्किंग से मंदिर प्रांगण तक लगभग 400 सीढ़ियाँ हैं,जिनके दोनों ओर जलपान एंव पूजन सामग्री की झोपड़ीनुमा दुकानें बनी हुई हैं। जो तीर्थयात्री एंव प्रकृतिप्रेमी यहाँ रात्रि विश्राम करना चाहें उनके लिए मन्दिर कमेटी द्वारा स्थायी धर्मशाला बनी हुई है।  साथ ही हिमाचल वन विभाग का विश्राम गृह भी स्थित है।  नवरात्री में यहाँ भक्तों का मेला लग जाता है।  इन दिनों भक्तजन दूर-दूर से यहाँ आकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।               

शिकारी देवी मन्दिर इतिहास 

शिखर पर स्थित शिकारी देवी मंदिर 

माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए लेखक 



                       

मन्दिर कमेटी की सराय 


वन विभाग का विश्राम ग्रह 



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