Sunday 9 September 2018

विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित कृष्ण मन्दिर   :  युला कांडा  

कृष्ण मन्दिर (युला कांडा)

देवभूमि हिमाचल जहाँ प्रकृति पग-पग पर अपनी आलौकिक सुन्दरता बिखेरती है। यहाँ के कण-कण को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो ईश्वर ने स्वयं अपने हाथों से इसकी संरचना की है। हिमाचल प्रदेश में स्थित किन्नौर जिले को हमारे देव ग्रंथों में देवताओं की भूमि कहा गया है। विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर स्थित भगवान श्री कृष्ण का  मन्दिर इसी पवित्र भूमि पर है।  जनमान्यता के अनुसार पाण्डवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान इस मन्दिर का निर्माण कराया था।  यह मन्दिर हिन्दू तथा बौद्ध धर्मावलम्बियों द्वारा समान रूप से पूजनीय है। समुन्द्र तल से लगभग 12500 फ़ीट की ऊँचाई पर छोटी सी पवित्र झील में स्थित यह मन्दिर छोटा किन्तु आकर्षक लगता है। इस मन्दिर में भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति विराजमान है।

पाण्डवों द्वारा पूजित भगवान श्री कृष्ण 

झील के चारों ओर बौद्ध धर्म की पवित्र पताकायें लगाई गई हैं जोकि यहाँ के वातावरण को और भी पूजनीय व दिव्य बना देती हैं। प्रत्येक वर्ष जन्माष्टमी के शुभ अवसर पर यहाँ जिलास्तरीय मेले का आयोजन होता है जिसमे हजारों की संख्या में भक्त पहुँचकर भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। अतिप्रसिद्ध ना होने के कारण अधिक लोग यहाँ नहीं पहुँच पाते जिससे यहाँ आने वाले तीर्थयात्री व ट्रेकर्स इस अनछुई प्रकृति का सम्पूर्ण आनन्द उठाते हैं।  एक अन्य रोचक प्रथा के अनुसार यहाँ आने वाले धर्मावलम्बी मन्दिर के समीप बहने वाली जलधारा में अपने सिर की टोपी से अपना भविष्य जानते हैं। प्राचीन मान्यता के अनुसार यदि आपके द्वारा डाली गई उलटी टोपी जलधारा में बिना रूकावट बहती हुई झील तक पहुँच जाती है तो इसका मतलब आने वाला वर्ष आपके लिए शुभकारी होगा।

युला कांडा में लेखक 

इस देवस्थान पर पहुँचने के लिए यात्रियों को सर्वप्रथम हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला पहुँचना पड़ता है।  जहाँ से भारत-तिब्बित मोटर मार्ग पर लगभग 200 किमी आगे टापरी पहुँचना होता है। तत्पश्चात तीर्थयात्री व पर्यटक उरनी होते हुए अन्तिम मोटरमार्ग युला गाँव पहुँचते हैं।  टापरी से सुबह 8.30 तथा सायं 4 बजे बस सुविधा उपलब्ध है,अन्यथा यात्री अपनी सुविधानुसार प्राइवेट जीप अथवा निजी वाहन द्वारा लगभग 1 घंटे में युला गाँव पहुँच सकते हैं।  छोटा सा गाँव होने के कारण यहाँ केवल होम स्टे में ही आप रात्रि विश्राम कर सकते हैं। अगली प्रातः यात्री युले कांडा पहुँचने के लिए लगभग 8 किमी की कठिन चढ़ाई आरम्भ करते हैं। सम्पूर्ण मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला है। शुरुआती 2-3 किमी गाँव में से होते हुए गुजरते हैं,जिसके पश्चात् घना जंगल आरम्भ हो जाता है। चीड़ तथा भोजपत्रो से घिरे लगभग 3 किमी के जंगल को पार करने के उपरान्त लगभग 1 किमी आगे दो कमरों की एक सराय बनी हुई है। जहाँ यात्री रात्रि विश्राम कर सकते हैं।  इस स्थान से युला कांडा मन्दिर की दूरी लगभग 2  किमी रह जाती है। जन्माष्टमी के अवसर पर युला गाँव के निवासी यहाँ आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए रहने तथा खाने-पीने की व्यवस्था करते हैं। वर्ष के अन्य दिनों में यहाँ आने वाले यात्रियों को अपने खाने-पीने तथा रहने के लिए टेंट की व्यवस्था स्वयं करनी पड़ती है।  युला गाँव से मन्दिर तक पहुँचने के लिए यात्रियों को लगभग 8-9 घंटे का समय लगता है। किन्तु मार्ग में बहने वाले प्राकृतिक झरने तथा हरियाली से सराबोर सुन्दर  नज़ारे इस समयावधि का का एहसास ही नहीं होने देते।  तीर्थयात्रियों एंव प्रकृतिप्रेमियों को जीवन में एक बार इस अवर्णनीय स्थान का रसपान करने हेतू अवश्य आना चाहिए।  

शिमला-टापरी                 :   लगभग 200 किमी मोटरमार्ग 
टापरी-उरनी-युला गाँव     :    लगभग 13 किमी  मोटरमार्ग 
युला गाँव-युला कांडा        :    लगभग 8 किमी (खड़ी चढ़ाई)
    





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Wednesday 11 July 2018

           फिल्मी नगरी ही नहीं मन्दिरों का भी शहर है :  मुम्बई 

समुन्द्र से गेटवे ऑफ़ इंडिया की तस्वीर 

भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई देश के चार महानगरों में से एक है। सपनों की इस नगरी को देखने की लालसा बच्चों से वृद्धों तक सभी में देखने को मिलती है। यहाँ का बॉलीवुड सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। किन्तु हम आपको इस नगरी के दूसरे स्वरुप मन्दिरों की नगरी से अवगत कराते हैं।



होटल ताज का बाहरी नज़ारा 

मुंबा देवी -  मुम्बई के भूलेश्वर में स्थित है मुंबा देवी मन्दिर। मराठी भाषा के मुंबा आई अर्थात मुंबा माता के नाम से ही इस नगरी को मुम्बई नाम मिला। लगभग 400 वर्ष पुराने इस मन्दिर  में भक्तों की असीम आस्था देखने को मिलती है।  मान्यता है कि माँ यहाँ आने वाले भक्तों के सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न करती है।  शेर पर सवार माँ मुंबा देवी के नारंगी चेहरे का तेज सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है। रजत मुकुट, नाक की लोंग तथा सोने के हार से किये गये श्रृंगार से मूर्ति की शोभा पर चार चाँद लग जाते हैं।  माँ लक्ष्मी के स्वरुप माँ मुंबा देवी के अगल-बगल माँ अन्नपूर्णा तथा माँ जगदम्बा की मूर्तियाँ स्थापित हैं। मंदिर में प्रतिदिन 6 बार माँ की आरती का विधान है।  देवी का भोग मंदिर की ऊपरी मंज़िल पर स्थित रसोई में बनाया जाता है।  मुंबा देवी का वाहन प्रतिदिन बदला जाता है तथा सभी वाहन चाँदी से निर्मित होते हैं।

बाबुलनाथ मन्दिर 

बाबुलनाथ मन्दिर  -  मालाबार हिल्स पर स्थित बाबुलनाथ मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। मन्दिर तक पहुँचने के लिए मेन रोड से अन्दर की तरफ थोड़ा सा पैदल चलना पड़ता है। मार्ग के दोनों तरफ पूजन सामग्री की कुछेक दुकाने सजी हुई हैं। जिनसे भक्त पूजा की थाली लेकर आगे बढ़ते हैं।  बाजार में पुरानी इमारतें देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम पुरातत्व विभाग द्वारा संरक्षित इमारतों के बीच से गुजर रहे हैं। छोटी सी पहाड़ी पर स्थित लगभग 200 वर्ष पुराने इस मन्दिर में पहुँचने के लिए भक्त सीढ़ियों अथवा लिफ्ट का इस्तेमाल कर सकते हैं।  लगभग 110 सीढ़ियाँ चढ़ना अथवा लिफ्ट जैसी आधुनिक सेवा का प्रयोग करना भक्तों पर निर्भर करता है। समुन्द्र तल से लगभग 1000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ से अरब सागर के नज़ारे देखने को मिलते हैं। प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु मुख्य गर्भ गृह में स्थित बड़े से शिवलिंग की पूजार्चना कर भगवान बाबुलनाथ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। मंदिर परिसर में विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित हैं।



महालक्ष्मी मन्दिर - मुंबई के सर्वाधिक प्राचीन धर्मस्थलों में से एक महालक्ष्मी मन्दिर भूलाभाई देसाई मार्ग पर स्थित है।  कहा जाता है कि सन्न 1831 में वरली तथा मालाबार हिल्स को जोड़ने का निर्माण कार्य चल रहा था। ब्रिटिश सरकार के अथाह प्रयास के बावजूद दीवार बनते ही ढह जाती थी। तब प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर (जोकि एक भारतीय थे) के सपने में माँ लक्ष्मी ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वरली के पास समुन्द्र के समीप तुम्हें मेरी मूर्ति मिलेगी। खोज करने पर माता की मूर्ति मिलने के पश्चात् इसी जगह पर मन्दिर का निर्माण कराया गया जिसके पश्चात् ब्रिज का निर्माण कार्य बड़ी आसानी से सम्पन्न हो गया। समुन्द्र के किनारे स्थित होने के कारण मन्दिर की सुन्दरता कई गुणा बढ़ जाती है। मन्दिर  के बाजार में माँ को अर्पित करने लिए चुनरी, फूल माला, पूजन सामग्री तथा मिष्ठान की कई दुकाने सुसज्जित हैं।  कमल का पुष्प माँ महालक्ष्मी को सर्वप्रिय है जिसे अपनी थाली में सजाकर भक्तजन माँ के चरणों में अर्पित  कर बड़ी आसानी से मनवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं। मन्दिर के भीतर माँ महालक्ष्मी, माँ सरस्वती एंव माँ काली की मूर्तियाँ सुसज्जित हैं।  तीनो मूर्तियों के गले में मोतियों से जड़ित हार, हाथों में सोने की चूड़ियाँ तथा नाक में नथ भक्तों को आकर्षित करती हैं।  शेर पर सवार होकर महिषासुर का वध करते हुए महालक्ष्मी भक्तों को दर्शन देती हैं। तीनों देवियों के असली स्वरुप सोने के मुखोटों से ढके रहते है।  प्रतिदिन शयन से  कुछ देर पहले मुखोटे हटा दिए जाते हैं। केवल उसी समय भक्त माँ के असली स्वरुप के दर्शन पा सकते हैं। प्रातः काल अभिषेक के पश्चात् पुनः सोने के मुखोटे मूर्तियों पर चढ़ा दिए जाते हैं।

सिद्धिविनायक मंदिर 

सिद्धिविनायक मंदिर -  मुम्बई  के प्रभादेवी में स्थित श्री सिद्धिविनायक मन्दिर का निर्माण सन्न 1801 में किया गया था।  भगवान गणेश को समर्पित यह मंदिर देश-विदेश में विख्यात है। अन्य मन्दिरों  के मुक़ाबले यहाँ सिक्यूरिटी कुछ ज्यादा ही देखने को मिलती है। मन्दिर के बाहर बनी पूजनसामग्री एंव मिठाई की दुकानों से भगवान गणेश को प्रिय मोदक खरीदकर भक्त आगे बढ़ते हैं। सिक्यूरिटी चेकिंग से कुछ आगे चलकर बायीं ओर  का मुख्य द्वार है। 200 वर्ष पुराने इस मन्दिर में लगभग 10 फ़ीट चौड़े एंव 13 फ़ीट ऊँचे गर्भ गृह में चबूतरे पर स्वर्ण शिखर वाला चाँदी का सुन्दर मंडप है जिसपर भगवान सिद्धिविनायक विराजित हैं। अष्टभुजी गर्भगृह में भक्तों के लिए 3 दरवाजे हैं, जिनपर विभिन्न देवी-देवताओं की आकृतियाँ बनी हुई हैं। आमतोर पर लोग बायीं ओर मुड़ी सूंड वाले गणपति जी की पूजार्चना किया करते हैं। दायीं ओर मुड़ी सूंड वाली प्रतिमाओं को सिद्धपीठ माना जाता है। यहाँ भी गणेश जी की सूंड दायीं ओर मुड़ी हुई है। इसीलिए इस स्थान को सिद्धपीठ माना गया है।


इस्कॉन  -   इस्कॉन के नाम से विख्यात यह मन्दिर मुंबई शहर में जुहू बीच के समीप स्थित है। लगभग 4 एकड़ में फैला श्री राधा रस बिहारी आस्था सखी मन्दिर राधा कृष्ण तथा राधा की सखियों को समर्पित है।  भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद द्वारा स्थापित इस्कॉन संस्था के अंतर्गत निर्मित इस मन्दिर में श्री श्री गोरा निताई, श्री श्री राधा बिहारी तथा सीता-राम-लक्ष्मण संग हनुमान जी की मूर्तियों को  देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता है। मन्दिर  परिसर में स्थित रेस्तरां में आप शुद्ध शाकाहारी व्यंजनों का लुत्फ़ उठा सकते हैं।          


एलिफेंटा केव्स 

एलिफेंटा केव्स - मुम्बई के गेटवे ऑफ़ इंडिया से लगभग 10 किमी. समुन्द्र के बीच छोटा किन्तु अत्यन्त सुन्दर टापू है - धरापुरी, जिसे गुफाओं का टापू भी कहा जाता है। यह अलौकिक स्थान अरब सागर में स्थित है। यहाँ एक समूह में पाँच हिन्दू गुफाएँ भगवान शिव को समर्पित हैं तथा दूसरे समूह में दो गुफाएँ भगवान बुद्ध को समर्पित हैं। एलिफेंटा पहुँचने के लिए पर्यटकों को मुम्बई के सुप्रसिद्ध गेटवे ऑफ़ इंडिया से हर एक-आध घंटे में स्टीमर्स मिल जाते हैं। लगभग 50 मिनट में स्टीमर समुन्द्र की लहरों के साथ अठखेलियाँ करता हुआ आपको विश्व धरोहर एलिफेंटा केव्स पहुँचा देगा।








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Monday 25 June 2018

कुम्भकरण के पुत्र को जहाँ मिली मुक्ति   :  भीमाशंकर  ज्योतिर्लिंग 

मन्दिर का पृष्ठ भाग  
महाराष्ट्र के पुणे शहर के नज़दीक सह्याद्रि पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य स्थित भीमाशंकर मन्दिर प्राचीन काल से ही  हिन्दुओं की आस्था का विशेष केन्द्र रहा है। हरे-भरे जंगलों से घिरा यह तीर्थ स्थल अत्यंत खूबसूरत होने के साथ साथ भारत सरकार द्वारा संरक्षित अभ्यारण के अन्तर्गत आता है।  भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक भीमाशंकर महादेव की यात्रा प्रत्येक हिन्दूजनमानस के लिए परम कल्याणकारी मानी जाती है।  भीमा नदी के किनारे स्थित यह पावन तीर्थस्थल प्रकृति के अदभुत नज़ारों को अपने में समेटे हुए है। 




मन्दिर का प्रवेश द्वार 
शिवपुराण के अनुसार लंका नरेश रावण के भाई कुम्भकर्ण का भीम नामक एक पुत्र था। भीम अपने पिता कुम्भकर्ण की भाँति ही दुष्ट एंव अत्याचारी राक्षस था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर कई प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और निरंकुश हो गया। मनुष्यों के साथ-साथ वह देवी -देवताओं को परास्त करने लग गया।  देवी-देवताओं के आग्रह करने पर  भगवान शिव ने इसी स्थान पर दुष्ट राक्षस भीम का वध किया तथा यहीं ज्योतिर्लिंग रूप में विराजमान हो गए।  भीमाशंकर मन्दिर की वास्तुकला नागर शैली एंव नई संरचना का मिला-जुला स्वरुप है।
मन्दिर परिसर का हॉल 
भीमाशंकर बस अड्डे से  लगभग 150 मीटर आगे चलकर बायीं ओर नीचे की तरफ सीढ़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं।  लगभग 400 सीढ़ियों के दोनों ओर दुकानें सजी हुई हैं जिनमें पूजनसामग्री, प्रसाद, खाने-पीने का सामान, बच्चों के खिलोनें इत्यादि का असीम भण्डार देखने को मिलता है।  तीर्थयात्रियों को बारिश व धूप से बचाने हेतू सम्पूर्ण मार्ग शेड से ढका हुआ है। सीढ़ियाँ उतरने के उपरान्त तीर्थयात्रियों को सर्वप्रथम मन्दिर के पृष्ठभाग के दर्शन प्राप्त होते हैं। काफी बड़े से प्रांगण को पार कर मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुँचा जाता है।  मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही एक बड़ा सा हॉल है जिसमें कई पुजारी यहाँ आने वाले भक्तों को समूहों में बिठाकर पूजार्चना करवाते हैं। यहीं सामने की दीवार पर बड़ी सी स्क्रीन में स्वयंभू भीमाशंकर शिवलिंग के बहुत सुन्दर दर्शन निरन्तर भक्तों को होते रहते हैं।  हॉल में से होते हुए 3-4 सीढ़ियाँ नीचे उतरने के पश्चात गर्भगृह में भगवान भीमाशंकर का शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में केवल 5-7 लोगों के ही खड़े होने की व्यवस्था है।  यहाँ पुजारी जी बारी-बारी से भक्तों की मंत्रोच्चारण के साथ पूजार्चना करवाते है। भीमाशंकर मन्दिर के आस-पास अन्य कई पूज्यनीय एंव दर्शनीय स्थल विध्यमान हैं। जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं  -

मन्दिर परिसर 
गुप्त भीमाशंकर मन्दिर -   भीमाशंकर मन्दिर से एक मार्ग गुप्त भीमाशंकर तक जाता है। इस मार्ग में आप छोटी  सी ट्रेकिंग का आनन्द भी ले सकते हैं।  झरने के तट पर स्थित यह लिंग भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की खोज का स्थान  माना जाता है।
साक्षी गणपति मन्दिर  -  मुख्य मन्दिर से लगभग 2 किमी. दूर इस मन्दिर में गणेश भगवान तीर्थयात्रियों की उपस्थिति के साक्षी माने जाते हैं।  इसीलिए भीमाशंकर आने वाले तीर्थयात्री साक्षी गणपति मन्दिर के दर्शन अवश्य करते हैं।
कमलाजा देवी मन्दिर -  शिव के साथ शक्ति की पूजा का भी विशेष महत्व होता है।  कमल के सिंघासन पर विराजित माँ गौरा के दर्शन पाकर भक्त धन्य हो जाते है।  प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा, गणेश चतुर्थी, दीपावली एंव महाशिवरात्रि पर यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे बड़ी संख्या में भक्तों का सैलाब उमड़ कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
यहाँ पहुँचने के लिए भक्तों को सर्वप्रथम महाराष्ट्र के पुणे शहर पहुँचना पड़ता है। जहाँ से भक्तजन राजगुरु नगर, मंचर, तालेघर होते हुए लगभग 125 किमी. का मार्ग महाराष्ट्र परिवहन निगम की बस  अथवा निजी वाहन द्वारा तय कर सकते हैं।  नासिक की तरफ से आने वाले तीर्थयात्रियों को मन्दिर पहुँचने के लिए मंचर, तालेघर होते हुए लगभग 215 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है।     
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Sunday 15 April 2018

सूर्य नगरी   :   जोधपुर 




नीली नगरी जोधपुर - पश्चिमी भारत के थार रेगिस्तान की सीमा पर बसा जोधपुर शहर सूर्य नगरी के नाम से विख्यात है। यह स्थान अपने किलों, महलों और उद्यानों से भारतीय एंव विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।  सन्न 1459 में राठौर राजा रॉव जोधा ने इस नगरी की स्थापना की थी।  तब से अब तक इस शहर में कई  बदलाव आये किन्तु कभी भी इसकी संस्कृति एंव सभ्यता को कोई भी आँच नहीं आयी।  रणबाँके राठौर की इस भूमि की सदियों पुरानी परम्परा राजपूतों ने आज भी अपनी अगली पीढ़ी के लिए संजो कर रखी है।  "नीली नगरी" जोधपुर को  देखने के लिए हर वर्ष लाखों पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं।



मेहरानगढ़ किला - 15वीं शताब्दी में निर्मित मेहरानगढ़ किला जोधपुर शहर से 125 मीटर की ऊँचाई पर एक टीले पर स्थित है। एक किदवंती के अनुसार मेवाड़ राजाओं के पास एक पहुँचे हुए संत बाबा भुक्खड़ चिड़ियानाथ आये थे और उन्होंने राजा को आदेश दिया कि इस स्थान पर एक किले का निर्माण किया जाए जो कि बाहर से आने वाली फोजों  से आपकी रक्षा करेगा। संत के कथनानुसार राजा ने यहाँ एक भव्य किले का निर्माण करवाया। नीचे  से किले तक पहुँचने के लिए पर्यटकों की सुविधा हेतू  एक पक्की सड़क है और एक लिफ्ट भी लगी हुई है।  किले में  पहुँचकर पर्यटक सबसे पहले दौलतखाने  मे प्रवेश करतें हैं। जहाँ  तामझाम ,रजतशाही ,पिंजसखासा आदि पालकियाँ रखी हुई हैं  जोकि रानियों एंव  राज कुमारो क आने-जाने के काम आती थी।  दूसरे कक्ष में मेवाड़ राजाओ द्वारा इस्तेमाल किये हुए अस्त्र शस्त्र पड़े  हैं तथा साथ ही एक कमरे में राजस्थान शैली की मिनियेचर पेंटिंग प्रदर्शित की गयी हैं।  किले के प्रथम तल पर शीश महल है जिसकी बाई और रानी का पूजा स्थल व् दायीं  तरफ नृत्य कक्ष है। इससे  ऊपर द्वितीय  तल में फूल महल व विश्राम स्थल है।   किले  की ऊपरी दीवार पर कुछ तोपें लगी हुई हैं जोकि 200-300 वर्ष पुरानी हैं। ऐतिहासिक  मेहरानगढ़ किला जोधपुर शहर  की जीवित शान के रुप में आज भी मजबूती  से अपने  देखने वाले सैलानियों के लिए खड़ा है
उमेद भवन पैलेस - जोधपुर शहर  से पूर्व की ओर  बना उमेद भवन पैलेस 20वीं  सदी  में निर्मित एक मात्र शाही  महल है।  सन 1929  में जोधपुर शहर में भयंकर अकाल पड़ा था। सब तरफ त्राही त्राही  मच गयी थी तब महाराजा उमेद  सिंह ने अपनी प्रजा को  काम उपलब्ध  कराने  के लिए इस महल का निर्माण कराया  था जोकि  16  वर्ष की अवधि  में पूरा हुआ।  सुनहरी पीले पत्थर से निर्मित इस महल का नक्शा अंग्रेज वास्तुकार कलिंगटन जैकब ने बनाया था।  आज महल का कुछ हिस्सा संग्रहालय और होटल के रूप में विकसित है व बाकी हिस्सा शाही परिवार का निजी निवास स्थान है।  शाही महल में प्रवेश करने के लिए एक बड़ा सा लोहे का गेट है जिस पर बड़े ही सुन्दर शब्दों में लिखा है " रणबांका राठौर " . शाही महल में प्रवेश करने पर पर्यटकों को सर्वप्रथम शाही उद्यान में लगे भाँति भाँति के फूल अपनी ओर आकर्षित करते हैं।  यह उद्यान 10 एकड़ से भी अधिक भूमि में फैला हुआ है।  महल के प्रथम कक्ष में रंगीन छाया चित्रों द्वारा महल के विभिन्न हिस्सों को दर्शाया गया हैं।  द्वितीय कक्ष में शाही परिवार को भेंट स्वरुप मिली अनोखी घड़ियों को प्रदर्शित किया गया है।  छोटी सी लॉबी को पार करने के पश्चात् पर्यटक तीसरे कक्ष में  प्रवेश करते हैं।  जहाँ काँच एंव बॉन चाइना से बनी कटलरी को प्रदर्शित किया गया है।  इन सभी शाही चीज़ों के बीच पर्यटक अपने आपको किसी शाही मेहमान से कम नहीं समझते।

जसवन्त थड़ा - मेहरानगढ़ किले से 2 किलोमीटर की दूरी पर  महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय की याद में सन्न 1899 में इस थड़े  का निर्माण कराया गया था। यह थड़ा अदभुत कारीगरी व नक्काशी से परिपूर्ण है।  थड़े के सामने  एक छोटा सा तालाब है जिसमे शाम के समय जसवन्त थड़े का प्रतिबिम्ब बहुत ही सुन्दर दिखाई  है।
मंडोर - मेवाड़ राज्य की  प्राचीन राजधानी मंडोर जोधपुर शहर से 6  किलोमीटर  की दूरी पर बसा है। स्थानीय निवासियों में  यह मंडोर उद्यान के नाम से भी विख्यात है।  उद्यान में राठौर राजा राव अजीत सिंह प्रथम एंव  जसवन्त सिंह प्रथम की मधुर स्मृति में लाल पत्थर से निर्मित छतरियाँ अपनी अद्भुत कारीगरी व् नक्काशी के लिए  प्रसिद्ध हैं। उद्यान के बाई तरफ बड़ी सी चट्टान पर हॉल ऑफ़ हिरों तराशी हुई है जिसमें हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है।  सर्वप्रथम यहाँ चट्टान पर राठाओं के कुल देवता भगवान गणेश की सूंदर मूर्ति उत्कृष्ट है।  उसके बाद चामुण्डा जी व महिषासुर मर्दानी की भव्य मूर्तियाँ तराशी हुई हैं।  उद्यान के कोने मे छोटा सा संग्रहालय है जहाँ मेवाड़ राजाओं की यादगार वस्तुएँ दर्शनार्थ रखी हुई हैं। बाग के दूसरे कोने में एक आधुनिक किन्तु छोटा सा अप्पू घर बच्चों के लिए स्थापित है।  जोधपुर वासी व पर्यटक दोनों ही इस उद्यान में आकर अपने आपको प्रफुल्लित महसूस करते हैं।  

कैसे पहुँचे -  जोधपुर देश के  सभी प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। हवाई मार्ग द्वारा भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। यह स्थान सम्पूर्ण राजस्थान से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़ा  हुआ है।  
शहर में घूमने के लिए टैक्सी, ऑटो व् जीप इत्यादि आसानी से  उपलब्ध हो जाते हैं।  
कहाँ ठहरें -  जोधपुर शहर में पर्यटकों के ठहरने के लिए हर बजट के होटल उपलब्ध हैं, जिनमे उमेद भवन पैलेस, अजीत भवन पैलेस, राजस्थान टूरिज्म का होटल घूमर,  होटल मरुधर इत्यादि उपलब्ध हैं।  
क्या खाएँ -  पर्यटक जोधपुर शहर की प्रमुख मिर्ची वड़ा व मेवाड़ कचौड़ी खाना कभी नहीं भूलते।  
क्या खरीदें -  नई सड़क, त्रिपोलिया, लक्कड़ बाजार व घण्टाघर शहर के मुख्य बाजार हैं जहाँ आप चमड़े से निर्मित वस्तुएँ ,पेंटिग, नक्काशी  मूर्तियाँ व् जोधपुरी लहंगा चोली खरीद सकते हैं।  
कब जाएँ - जोधपुर जाने का उत्तम समय नवम्बर - मार्च के  बीच है।  उस समय यहाँ का का अधिकतम तापमान 27 डिग्री व न्यूनतम तापमान 9 डिग्री के बीच रहता है।       

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Tuesday 20 March 2018

           जहाँ  है रहस्यमयी कृष्णा बटर बॉल :  महाबलिपुरम 



समुद्र तट मन्दिर 

तमिलनाडू की राजधानी चेन्नई से लगभग 60 किमी. की दूरी पर छोटा सा शहर है, जिसे महाबलिपुरम के नाम से  जाना जाता है।  बंगाल की खाड़ी के समुन्द्र तट पर स्थित होने कारण यह स्थान बहुत ही मनोरम है। प्राचीन काल में मामल्लापुरम अर्थात महान योद्धाओं के क्षेत्र के नाम से विख्यात यह स्थान पल्लव राजाओं की राजधानी हुआ करता था । 7वीं 8वीं  शताब्दी में निर्मित यहाँ  की  शिल्पकला तथा पत्थरों को तराशकर बनाये गए यहाँ  के मन्दिर दक्षिण  भारतीय संस्कृति का  जीता जागता स्वरुप हैं। वर्षभर यहाँ देशी-विदेशी कलाप्रेमी पर्यटकों का मेला लगा रहता है।  समुन्द्र किनारे स्थित समुन्द्र तट मंदिर (sea shore temple) दक्षिण भारत  के सर्वोत्तम प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है। द्रविड़ वास्तुकला का नमूना पेश करता यह मन्दिर भगवान विष्णु एंव शिव को  समर्पित है।  मन्दिर से टकराती सागर की लहरें आत्मविभोर कर देती हैं। 

अर्जुन पेनांस 

अर्जुन पेनांस अर्थात गंगा अवतरण - दो विशाल शिलाओं से निर्मित इस शिलाखण्ड का आकर 27 मीटर x 13 मीटर है।  यहाँ तपस्या में लीन पाण्डव पुत्र अर्जुन तथा गंगा अवतरण को पत्थरों पर उकेरकर बड़े ही सुन्दर तरीके  से दर्शाया गया है।


पंच रथ मन्दिर 

पंच रथ मन्दिर - तट मन्दिर से कुछेक किमी. की दूरी पर पंच रथ मन्दिर पाँच पाण्डवों को समर्पित है।  कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय द्रोपदी सहित पाँच पाण्डवों ने कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था।  


कृष्णा बटर बॉल 

रहयस्यमयी कृष्णा बटर बॉल - सम्पूर्ण विश्व में अनेक ऐसे रहस्यमयी तथ्य हैं जो विज्ञान को चुनोती देते देखे जा सकते हैं।  इसी का एक उदाहरण महाबलिपुरम में देखा जा सकता है। 6 मीटर ऊँचा, 5 मीटर चौड़ा तथा लगभग 250 टन वजनी यह विशालकाय पत्थर 45 डिग्री के कोण पर हजारों वर्षों से ज्यों का त्यों टिका हुआ है। कृष्णा बटर बॉल के  नाम से विख्यात यह अजूबा भौतिक विज्ञान के ग्रेविटी नियमों का उल्लंघन करता  प्रतीत होता है। लोगों की आस्था है कि यह बॉल भगवान श्री कृष्ण  के सर्वोप्रिय भोग मक्खन के रूप में स्वर्ग से गिरी है। यह जानते हुए भी कि सन 1908 में तबके के गवर्नर आर्थर हेवीलॉक के आदेशानुसार 7 हाथियों द्वारा इस पत्थर को हिलाने की नाकाम कोशिश की गयी थी, यहाँ आये पर्यटक इसे हिलाने का प्रयास कर रोमांच का अनुभव करते हैं।  

लाइट हाउस से महाबलिपुरम  विहंगम दृश्य 

लाइट हाउस - समुद्री जहाजों का पथ निर्देशन करने  हेतू बनाये गए इस लाइट हाउस में  यात्री टिकट लेकर ऊपरी तल तक जा सकते हैं।  85 फ़ीट ऊँचे बने इस लाइट हाउस से सम्पूर्ण मामल्लापुरम शहर तथा मीलों फैले समुद्र का दृश्यावलोकन अति लुभावना लगता है। इतनी ऊँचाई से  देखने पर भय एंव रोमांच से शरीर आनन्दित हो उठता है। 


महाबलिपुरम बीच 

क्रोकोडाइल पार्क - महाबलिपुरम से 14 किमी. दूर चेन्नई महाबलिपुरम रोड पर स्थित है मद्रास क्रोकोडाइल बैंक। इसे 1976 में अमेरिका के  रोमुलस विटेकर तथा उनकी पत्नी ने स्थापित किया था। केवल 15 मगरमच्छों से शुरू हुए इस पार्क में आज विभिन्न प्रजातिओं के 5000 से भी अधिक मगरमच्छ संरक्षित हैं।  


दक्षिण भारतीय व्यंजन का लुत्फ़ 

महाबलिपुरम पहुँचने के लिए चेन्नई निकटतम हवाई  अड्डा है। जोकि यहाँ से 60 किमी. दूर है।  रेलमार्ग द्वारा पहुँचने वाले यात्रियों के लिए चेन्गलपटु रेलवे स्टेशन यहाँ से 29 किमी. की दूरी पर स्थित है।  किन्तु अपनी यात्रा को सबसे बेहतरीन एंव रोमांच से भरपूर बनाने के लिए पर्यटकों को ईस्ट कोस्ट रोड अर्थात ECR को ही चुनना चाहिए। बस अथवा निजी वाहन द्वारा समुद्र  के साथ-साथ  चलते हुए अपनी यात्रा को यादगार बनाया जा सकता  है।        










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Sunday 18 March 2018

                      भगवान शिव को समर्पित : एलिफेंटा केव्स 

महादेव का त्रिमूर्ति स्वरूप 
मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया से लगभग 10 किमी. समुन्द्र के बीच छोटा किन्तु अत्यंत सुन्दर टापू है - धरापुरी, जिसे गुफाओं का टापू भी कहा जाता है। यह अलौकिक स्थान अरब सागर में स्थित है। पुर्तगालियों  ने पहली बार जब इस द्वीप को दूर से  देखा तो उन्हें हाथी अर्थात एलिफैंट की एक  विशाल मूर्ति  दृष्टिगोचर हुई। जिस  कारण उन्होंने इसे एलिफेंटा केव्स का  नाम दे  दिया। पहाड़ी को तराशकर बनाई गई इन गुफाओं को दो समूहों में बाँटा गया है।  एक समूह में पाँच हिंदू गुफाएँ तथा दूसरे समूह में दो बुद्धिस्ट गुफाएँ सम्मिलित हैं। हिन्दू गुफाओं  में भगवान सदाशिव की सुन्दर और विशाल प्रतिमायें बनी हुई हैं। माना जाता है कि इन्हें 5वीं से 8वीं शताब्दी में बनाया गया होगा। 
एलिफेंटा केव्स का विशाल हॉल 

गुफा में एक बड़ा हॉल है जिसमे भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं को मूर्तियों में तराशा गया है। एलिफेंटा केव्स का मुख्य आकर्षण कभी न भुलाई जा सकने वाली भगवान शिव की त्रिमूर्ति है।  जिसमें महादेव कैलाशपति की रचयिता, पालनकर्ता एंव संघारकर्ता की छवि प्रस्तुत की गयी है। यह विशाल मूर्ति 23-24 फ़ीट लंबी तथा 17 फ़ीट ऊँची है। इसके अलावा नटराज,अर्धनारेश्वर, शिव-पार्वती एंव रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने का  प्रयास करती प्रतिमाएँ सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हैं।
लेखक अपने परिवार के साथ 

सन्न 1987 में यूनेस्को द्वारा एलिफेंटा गुफाओं को विश्व धरोहर घोषित कर दिया गया। जिससे यह गुफाएँ पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गयी। एलिफेंटा पहुँचने के लिए पर्यटकों को मुंबई के सुप्रसिद्ध गेटवे ऑफ़ इंडिया से हर एक-आध  घंटे में स्टीमर्स मिल जाते हैं। जिसमे आने जाने का किराया 180 रूपए है। लगभग 50 मिनट में स्टीमर समुन्द्र की लहरों के साथ अठखेलियाँ करता हुआ आपको वहाँ पहुँचा देता है।
विश्व धरोहर का प्रवेश द्वार 
तट से एलिफेंटा गुफाएँ लगभग आधा किलोमीटर दूर है। पर्यटक पैदल अथवा टॉय ट्रेन का लुत्फ़ उठाते हुए भी इन गुफाओं तक  पहुँच सकते हैं।  टॉय ट्रेन का लुत्फ़ उठाने के लिए मात्र 10 रूपए की टिकट खरीदनी होती है।  टॉय ट्रेन से उतरकर लगभग 110 सीढियाँ चढ़नी पढ़ती हैं। सीढियाँ चढ़ने में असमर्थ पर्यटकों को यहाँ पालकी उपलब्ध हो जाती है।
टॉय ट्रेन का लुत्फ़ उठाता छोटा सा पर्यटक 
सीढ़ियों के दोनों ओर आस-पास के गाँव वालों ने दुकानें सजाई हुई हैं जोकि उनकी जीविका का साधन है। इन अस्थाई दुकानों में सजे सुन्दर-सुन्दर स्मृति चिन्हों को पर्यटक यादगार के रूप में यहाँ से ले जाते हैं।  समुन्द्र के बीच स्थित होने  के कारण यहाँ की आबोहवा ने इस स्थान को  बेहतरीन पर्यटक स्थल बना दिया है। जनमान्यता है कि पाण्डवों ने इन गुफाओं का निर्माण अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। यह स्थान तीर्थयात्री  एंव पर्यटक दोनों को ही अपनी ओर आकर्षित करता है।  


अरब सागर में तैरता जहाज 
गेटवे ऑफ़ इंडिया से उपलब्ध स्टीमर्स               



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Monday 4 September 2017

 रहस्यमयी मन्दिर जहाँ नहीं टिक पाती छत :  शिकारी देवी

माँ शिकारी देवी मन्दिर 

सम्पूर्ण विश्व में देवात्मा हिमालय अपनी अपूर्व प्राकृतिक सुन्दरता के लिए विख्यात है। इसी हिमालय में स्थित देव भूमि हिमाचल में अनेकों ऐसे प्राकृतिक देव स्थल विद्यमान हैं जो स्वयं में कई रहस्य समेटे हुए हैं। ऐसा ही एक रहस्यमयी एंव अलौकिक देव स्थल है - माँ शिकारी देवी। महृषि मार्कण्डेय ने इस सुन्दर स्थान पर कई वर्षों  तप किया जिससे प्रसन्न होकर माँ यहीं विराजमान हो गयीं। प्राचीन मान्यता के अनुसार पाण्डव पुत्रों ने अपने बनवास काल में माँ को प्रसन्न करने हेतू यहाँ मंदिर का निर्माण किया था। मन्दिर तो बन गया किन्तु किसी कारणवश छत का निर्माण करने से पूर्व ही उन्हें यहाँ से पलायन करना पड़ा।  कहा जाता है कि तभी से देवी प्रकोप  के कारण यहाँ कई बार कोशिश करने के बावजूद छत निर्माण का कार्य सम्पन्न नहीं हो पाया। मन्दिर के आस-पास कई सराय निर्मित हैं,जिनपर छत बनाना आसान था किन्तु मंदिर पर छत बनने से पहले ही ढह जाने का सिलसिला हर बार जारी रहा।  शरद ऋतु में यह सम्पूर्ण क्षेत्र 10-15 फुट बर्फ से ढक जाता है। किन्तु यह माँ का चमत्कार ही है कि शिकारी देवी मन्दिर परिसर में बर्फ नहीं टिक पाती। विज्ञान भी आज तक इन चमत्कारों को चुनोती नहीं दे पाया।

प्राकृतिक सुन्दरता से परिपूर्ण क्षेत्र 

प्राचीन काल में अत्याधिक घना वन क्षेत्र होने के कारण शिकारी शिकार पर जाने से पूर्व माँ का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते थे। उनका यह मानना था कि माँ का आशीर्वाद लेकर शिकार पर जाने से सफलता अवश्य मिलेगी। जिससे कालान्तर में मन्दिर में प्रतिस्थापित माँ दुर्गा का नाम शिकारी देवी पड़ गया। समुन्द्र तल से लगभग 11000 फुट की ऊँचाई पर शिकारी देवी का मन्दिर मंडी जिले में चौहार घाटी के एक उच्च शिखर पर स्थापित है।  माँ के इस छोटे से मंदिर में कई देवी-देवताओं की पाषाण  मूर्तियाँ स्थापित हैं। यहाँ आये भक्तजन बड़े ही श्रद्धाभाव से पूजार्चना कर माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।


मन्दिर परिसर में पाषाण मूर्तियाँ 

काफी ऊँचाई पर स्थित होने के कारण  इस क्षेत्र को मंडी क्षेत्र का ताज भी कहा जाता है।  यहाँ से चारों ओर दृष्टि डालने पर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो हम बादलों में विचरण कर रहे हों।  शिकारी देवी मंदिर पहुँचने के लिए तीर्थयात्रिओं एंव प्रकृति प्रेमिओं को सर्वप्रथम हिमाचल जिले के मंडी शहर पहुँचना पड़ता है।  मंडी शहर से बस अथवा निजी वाहन द्वारा चैल चौक, बगस्याड, थुनाग होते हुए 75 किमी. दूर जन्जैहली पहुँचा जाता है। जन्जैहली कस्बे से लगभग २ किमी. आगे बायीं ओर 8-10 सीढ़ियाँ नीचे उतरकर एक विशाल शिला दिखाई पड़ती है,जिसे पाण्डव शिला के नाम से जाना जाता है। इतनी विशाल एंव भारी भरकम शिला को हिलाने  का ख्याल भी दिल-दिमाग में नहीं लाया जा सकता। आपको जानकार हैरानी होगी कि आप अपने हाथ की सबसे छोटी ऊँगली से भी इसे हिला सकते हैं। स्थानीय निवासी इसे पवित्र शिला  मानते हैं।  

                                                               

पाण्डव शिला 

जन्जैहली छोटा किन्तु सुन्दर क़स्बा है। प्रकृति ने इस स्थान को अमूल्य सुन्दरता प्रदान की हुई है। यहाँ यात्रियों के ठहरने हेतू हिमाचल टूरिज्म का ट्रेकर हॉस्टल एंव निजी होटल हैं। जन्जैहली से शिकारी देवी तक  सम्पूर्ण मार्ग वन विभाग के अंतर्गत आता है।

रायगढ़ 

मार्ग अति संकरा होने के कारण केवल छोटे वाहन ही मंदिर तक जा पाते हैं।  वाहन पार्किंग से मंदिर प्रांगण तक लगभग 400 सीढ़ियाँ हैं,जिनके दोनों ओर जलपान एंव पूजन सामग्री की झोपड़ीनुमा दुकानें बनी हुई हैं। जो तीर्थयात्री एंव प्रकृतिप्रेमी यहाँ रात्रि विश्राम करना चाहें उनके लिए मन्दिर कमेटी द्वारा स्थायी धर्मशाला बनी हुई है।  साथ ही हिमाचल वन विभाग का विश्राम गृह भी स्थित है।  नवरात्री में यहाँ भक्तों का मेला लग जाता है।  इन दिनों भक्तजन दूर-दूर से यहाँ आकर माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।               

शिकारी देवी मन्दिर इतिहास 

शिखर पर स्थित शिकारी देवी मंदिर 

माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हुए लेखक 



                       

मन्दिर कमेटी की सराय 


वन विभाग का विश्राम ग्रह 



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