भू-बैकुंठ का धाम : गौमुख
गौमुख ग्लेशियर |
देवनदी गंगा जिसके उदगम स्थल की यात्रा निःसन्देह एक आलौकिक आनन्द की अनुभूति कराती है। भू बैकुंठ के इस स्वर्ग की यात्रा प्रत्येक हिन्दू के लिए अत्यंत कल्याणकारी होती है। विदेशी सैलानी एंव भारतीय पर्यटक भी इस यात्रा के सुअवसर से वंचित नहीं रहना चाहते। बर्फ के ग्लेशियर से जब गंगा जी की पावन धारा निकलती है तब ऐसा प्रतीत होता है,मानो देवाधिदेव महादेव शिवजी की जटाओं से पतितपावनी गंगा जी प्रकट हो रही हैं। हिन्दू जनमानस गौमुख की इस दुर्लभ एंव दुर्गम महायात्रा पर जाने के लिए सदा लालायित रहता है। गंगोत्री से गौमुख का पैदल मार्ग लगभग 18किमी. का है। इस यात्रा मे जाने वाले तीर्थयात्रियों व पर्यटकों को सर्वप्रथम उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी शहर पहुँचना होता है। यहाँ से सीधे सड़क मार्ग द्वारा गंगोत्री पहुँचा जाता है।
गंगोत्री स्थित माँ गंगा मन्दिर |
उत्तराखंड के चार धामों मे से एक गंगोत्री धाम अत्यन्त पूज्यनीय है। गंगोत्री धाम से कुछ दूर चलने पर वन विभाग की चौकी है। यहाँ प्रत्येक तीर्थयात्री एंव पर्यटक को अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर आगे बढ़ना चाहिए। पतितपावनी माँ भागीरथी के साथ साथ तीर्थयात्री आगे की ओर बढ़ते हैं। घने वृक्षों वाले इस मार्ग के मध्य से होते हुए आगे बढ़ना अत्यन्त रोमांचकारी प्रतीत होता है। थोड़ा आगे बढ़ने पर अत्यन्त तीव्र वेग से पहाड़ों को चीरता हुआ स्वच्छ निर्मल जल का झरना नीचे की ओर आता है। इस जलधारा को पार करने के लिए चीड़ के वृक्षों से बने दो तख्ते लगाये गए हैं जिन्हे पार करना काफी कठिन कार्य है। कमजोर दिल के व्यक्ति झरनों की इस धारा को देखकर घबरा जाते हैं तथा आगे बढ़ने का साहस नहीं कर पाते,मजबूत इरादे वाले व्यक्ति ही आगे जा पाते हैं।
तीव्र जलधारा को पार करते हुए लेखक |
यहाँ से आगे बढ़ने पर चीड़ के घने वृक्षों वाला वन आरम्भ हो जाता है। मार्ग के दोनों ओर खड़े हिमशिखर मानो आने वाले यात्रियो का स्वागत करते हैं। स्वर्ग तुल्य इस भूमि के पग पग पर फैली हरियाली एंव माँ भागीरथी की अत्यन्त मनोरम ध्वनि यात्रियो के चित को आकर्षित करती है। चिड़वासा से पूर्व यात्रियो को एक बार पुनः पहाड़ी झरने को पार करने के लिए लकड़ी के दो तख्तों पर से गुजरना पड़ता है। गंगोत्री से चिड़वासा की दूरी लगभग 8किमी. की है। चीड़ के घने वृक्षों के मध्य स्थित यह अत्यन्त मनोरम स्थान है। यात्रियो के लिए यहाँ खाने पीने की 10-15 झोपड़ीनुमा दुकाने बनी हैं। यहाँ के दुकानदार यात्रियो को रात्री विश्राम के लिए बहुत कम शुल्क मे रज़ाई एंव गद्दे उपलब्ध करवा देते हैं।
झोपड़ीनुमा दुकान के बाहर विश्राम करते यात्री |
यहाँ से आगे खड़ी चड़ाई वाला मार्ग आरम्भ हो जाता है। यात्री एंव पर्यटक फूलती हुई सांस के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ते है। चिड़वासा से आगे भागीरथी के दोनों किनारों पर नैलंग एंव भृगुपंथ शिखर खड़े मिलते हैं। ब्रह्म महूर्त मे सूर्य की पहली किरण पड़ने पर इन पर्वत शिखरों की आभा अत्यन्त मनोहारी हो जाती है जिन्हे देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो सूर्य की किरणें इन पर्वत शिखरों का शृंगार कर रही है। स्वर्णिम प्रतीत होते ये शिखर किसी भी यात्री को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पूर्ण रूप से सक्षम हैं। इस मार्ग मे तीर्थयात्रियों के अलावा काफी संख्या मे विदेशी पर्यटक भी मिलते हैं। भारतीय संस्कृति एंव देवात्मा हिमालय को देखने की उनकी अभिलाषा किसी भी प्रकार से कम नहीं होती। यहाँ से थोड़ा आगे बढ़ने पर एक स्थान पर कच्चा पहाड़ है जिससे निरन्तर छोटे छोटे पत्थर मार्ग मे गिरते रहते हैं। यात्रियो को अत्याधिक सावधानी पूर्वक इस मार्ग को तय करना चाहिए।
पथरीला पहाड़ी मार्ग |
ऑक्सिजन की कमी के कारण यहाँ प्राय: यात्रियो की सांस फूलती है। उन्हे अपने साथी टॉफी,ग्लूकौस,पानी इत्यादि सदैव अपने पास रखना चाहिए। थोड़ा आगे बढ़ने पर भोज के वृक्षों वाला वन आरम्भ हो जाता है। इस स्थान को भोजवासा कहा जाता है। चिड़वासा से भोजवासा लगभग 4किमी. की दूरी पर स्थित है। प्राचीन काल मे इन्ही भोज वृक्षो के पत्तों पर लिखने का कार्य सम्पन्न होता था जिस कारण इन वृक्षो को अत्यन्त पवित्र माना जाता है। भोजवासा के वृक्षो की अधिकता होने के कारण इस क्षेत्र को भोजवासा कहा गया है। गौमुख मे रात्रि विश्राम की व्यवस्था न होने के कारण यात्री गौमुख दर्शनोपरांत पुनः भोजवासा लोटकर रात्रि विश्राम करते हैं। यात्रियो की सुविधा के लिए यहाँ घाटी मे लाल बाबा आश्रम एंव गढ़वाल मण्डल विकास निगम का एक रेस्ट हाउस निर्मित है। चिड़वासा की भाँति यहाँ भी खाने पीने एंव रात्रि विश्राम के लिए झोपड़ीनुमा दुकाने उपलब्ध हैं।
मार्ग मे विश्राम करते यात्री |
इस क्षेत्र मे विभिन्न प्रकार के पक्षियों का करलव मन मोह लेता है। यहाँ कस्तूरी मृग भी अत्यधिक संख्या में पाये जाते हैं। शहरों के प्रदूषित वातावरण से मीलों दूर इस निर्जन एकांत स्थान की अलौकिक शान्ति को वर्णित नहीं केवल महसूस किया जा सकता है। यहाँ का शांत एकान्त वातावरण निःसन्देह किसी भी मनुष्य के लिए स्वर्गतुल्य है।
हिमछिंदित चोटियाँ |
भोजवासा से ही मनोहारी हिमछिंदित भागीरथी एंव शिवलिंग शिखरों के दर्शन होते हैं। भोजवासा से गौमुख ग्लेशियर लगभग 6किमी. दूर है। यहाँ से आगे का मार्ग बेहद कठिन है। बड़े बड़े पत्थरों को पार कर तीर्थयात्रियों को आगे बढ़ना होता है। समुन्द्र तल से यह स्थान काफी ऊँचाई पर स्थित है। जिस कारण ऑक्सिजन की कमी होने से कुछ यात्रियो को सांस की तकलीफ का सामना करना पड़ता है। जब सूरज की प्रथम किरणें हिमशिखरों पर पड़ती हैं तो ऐसा प्रतीत होता है मानो सूर्य देव इन हिमशिखरों का स्वर्णिम शृंगार कर रहे हों। पत्थरों वाले मार्ग से नीचे उतरकर यात्री एक बड़े से मैदान मे पहुँच जाते हैं। तीर्थयात्रियों को धरती पर सर्वप्रथम यहीं से ही स्वर्ग की देवी गंगा जी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है। यही वह अलौकिक स्थान है जहाँ पतित पावनी गंगा मैया का तीव्र वेग से बहता हुआ निर्मल जल गौमुख ग्लेशियर से बाहर निकलता है। यहाँ गंगा मैया एक विशाल बर्फ की गुफा से निकलती हैं।
गोमुख से निकलती माँ भागीरथी की तीव्र धारा |
समुन्द्र तल से लगभग 4220 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह स्थान मोक्षदायनी गंगा मैया का उदगम स्थल है। बर्फ के ग्लेशियर से निकलता हुआ ये जल अत्यन्त तीव्र गति से आगे की ओर बढ़ता है। गौ शब्द के दो शाब्दिक अर्थ होते हैं-गाय का मुख तथा पृथ्वी। गंगोत्री ग्लेशियर गाय के मुख की आकृति का है। इसी कारण जब गंगा जी बर्फनुमा गाय के मुख से निकलती हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि मानो गौमुख से निकल रही हों। यह गुफा लगभग 300 फुट ऊँची तथा 100 फुट चौड़ी है। गौमुख ग्लेशियर लगभग 24 किमी. लंबा तथा 2 किमी. चौड़ा है। गुफा के समीप ही गंगाजल मे बर्फ के बड़े बड़े शिलाखंड तैरते हुए दिखते हैं। जब ग्लेशियर से यह शिलाखण्ड टूटकर भयंकर गर्जना के साथ गंगा जी के जल मे गिरते हैं तब वहाँ खड़े यात्रियो को भय एंव रोमांच का एकसाथ अनुभव होता है। कुछ साहसी तीर्थयात्री माँ भागीरथी के इस बर्फीले जल मे स्नान करने के उपरांत वहीं पास ही बने एक अस्थाई मंदिर मे पूजार्चना करते हैं। श्रावण मास मे यहाँ शिवभक्त कावड़ियों का मेला लगता हैं। कावड़िए गंगा जी के उदगम स्थल से अपनी कावड़ भरकर विभिन्न शहरों के शिवालयों मे चढ़ाते हैं। इस स्थान पर देवलोक से अवतरित होने वाली पुण्यसलीला माँ भागीरथी की शोभा देखते ही बनती है। करोड़ो भारतवासियों का उद्धार करने के लिए ये पावन जलधारा धरती पर आयी हैं। इस पवित्र स्थान पर यात्रियो को गंगा मैया के प्रथम दर्शनों का पुण्यलाभ प्राप्त होता है जिस कारण यह पवित्र स्थान अत्यन्त पूज्यनीय है। अत्यधिक सौभाग्य शाली मनुष्यों को ही यहाँ आकर अपने जन्म जनमान्तर के पापों से मुक्ति का सुअवसर प्राप्त होता है। गौमुख से आगे नन्दन वन,रक्तवन,तपोवन आदि अनेक ऐसे स्थान हैं जहाँ पहुँचने के लिए अत्यन्त दुर्गम मार्ग से होकर जाना पड़ता है। कुछ साहसी यात्री मार्ग की दुर्गमता के बावजूद तपोवन तक पहुँचकर निःसन्देह अपने साहस का परिचय देते हैं। यहाँ के शान्त एकान्त वातावरण के कारण कुछ साधू-सन्यासी ग्रीष्म काल मे यहाँ आकर तपस्या करते हैं।
गंगोत्री क्षेत्र मे निवास करते साधू सन्यासी |
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