Friday, 10 February 2017

           भारत की दुर्गम महायात्रा : आदि कैलाश 

आदि कैलाश की तलहटी पर लेखक अपने ग्रुप के साथ 

देवताओं की निवासभूमि हिमालय प्राचीन काल से ही अपनी विपुल नैसर्गिक सुंदरता के लिए विश्व प्रसिद्ध रही है। यहाँ के पग-पग मे फैले आलौकिक दृश्य न केवल तीर्थयात्रियों अपितु प्रकृति का रसपान करने वाले घुमक्कड़ों की भी आस्था का प्रेरणास्रोत रहे हैं। इसी हिमालय के उत्तरांचल राज्य के कुमाऊँ मण्डल मे ऐसी ही एक आस्था,रोमांच एंव दुर्गमता की प्रतीक रही है आदि कैलाश यात्रा। इस यात्रा के लिए तीर्थयात्रियों को दिल्ली से लगभग 780 किमी. बस द्वारा तथा लगभग 160 किमी. कठिन पैदल मार्ग का सफर तय करना पड़ता है। 

नेपाली धारचूला बाज़ार 

उत्तरांचल राज्य के धारचूला पहुँचने के लिए दो मार्ग उपलब्ध हैं। एक मार्ग काठगोदाम,अल्मोड़ा होते हुए धारचूला पहुँचता है तथा दूसरा टनकपुर,पिथोरागढ़ होते हुए। धारचूला एक सीमान्त कस्बा है। जहाँ स्थित एक पुल के दूसरी तरफ  नेपाल अंतर्गत क्षेत्र को नेपाली धारचूला कहा जाता है। अंतिम बाज़ार होने के कारण तीर्थयात्रियों एंव पर्यटको को यात्रा मार्ग मे काम आने वाली वस्तुएँ जैसे टॉर्च,लाठी, छाता, टॉफी-गोलियाँ, जरूरी दवाइयाँ इत्यादि यहीं से खरीद कर आगे बढ़ना चाहिए। आदि कैलाश यात्रा पार जाने वाले यात्रियो को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से अनुमति पत्र लेने आवश्यक होता है। मंगती तक तीर्थयात्रियों को मोटर मार्ग उपलब्ध है। यहाँ से आगे यात्रियो को सम्पूर्ण मार्ग पैदल ही तय करना पड़ता है। 

तवाघाट  

मंगती से गाला लगभग 5 किमी. की दूरी पर स्थित है। किन्तु अत्यधिक खड़ी चड़ाई तथा घने जंगलों से होकर गुजरने के कारण ये 5 किमी. का मार्ग 15 किमी. जैसा लगता है। यात्रियो के मुख से फूलती हुई साँस के साथ केवल ॐ नमः शिवाय का मंत्र ही निकल पाता है। गाला कैंप समुन्द्रतल से लगभग 2440 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। जहाँ से सामने की ओर देखने पर हरी-भरी आछन्दित घाटियाँ दिखाई पड़ती हैं जो तन एंव मन को काफी शीतलता प्रदान करती हैं। 

काली गंगा 

अगले दिन बूंदी जाने के लिए गाला कैंप से निकलते ही सबसे पहले पत्थरों को काटकर बनाई गई 4444 सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं। गाला से बूंदी की दूरी लगभग 18 किमी. है। तीर्थयात्री काली गंगा के साथ-साथ माल्पा होते हुए लखनपुर पार करते हैं। लखनपुर के बाद मार्ग काफी संकीर्ण होने के कारण कई जगह ऊपर से गिरते पानी के झरनों मे से होकर जाना पड़ता है। 

छाता फ़ॉल्स 



थका देने वाली इस यात्रा मे बूंदी कैंप आने पर यात्रियो को काफी सकून मिलता है। रात्री विश्राम के पश्चात तीर्थयात्री अगली सुबह गूंजी की ओर प्रस्थान करते हैं। बूंदी से गूंजी की दूरी लगभग 17 किमी. है। बूंदी कैंप से निकलते ही लगभग चार-साढे चार किमी. की खड़ी चड़ाई के साथ घने जंगलों के बीच से होते हुए यात्री सियालेक (छायालेक) घाटी मे प्रवेश करते हैं। यहाँ से सामने की ओर देखने पर नेपाल स्थित अन्नपूर्णा पर्वत के दर्शन होते हैं। यहाँ से थोड़ा आगे घास के मैदान को पारकर गर्ब्यांग नामक गाँव आता हैं। गर्ब्यांग गाँव धीरे-धीरे जमीन मे धंस रहा है,जिस कारण कुछ वर्षों पश्चात इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। यहाँ से गूंजी तक की यात्रा आरामदायक है।

गूंजी कैंप 

गूंजी पड़ाव नदी के दूसरी तरफ लगभग एक-डेढ किमी. पहले दिखने लगता है, किन्तु लोहे का पुल काफी आगे होने की वजह से यात्रियो को घूम कर आना पड़ता है। इस पुल को पार करते ही  एक मार्ग बायीं ओर कुट्टी घाटी की तरफ जाता है,जहाँ से यात्री कुट्टी,जोलिंग काँग होते हुए आदि कैलाश पहुँचते है। दायी तरफ जाने वाला मार्ग गूंजी,काला पानी,नवीडांग,लिपुलेक पास होते हुए तिब्बित स्थित हिंदुओं के सर्वोच्च तीर्थ कैलाश मानसरोवर जाता है। पुल पार करने के उपरान्त जब तीर्थयात्री आदि कैलाश वाले मार्ग पर थोड़ा सा आगे बढ़ते हैं तो उन्हे पुनः कुट्टी गंगा पार करनी पड़ती है। 

कुट्टी गंगा पर बना अस्थाई बांस का पुल 

कुट्टी गंगा पार करने के लिए तीर्थयात्रियों को बाँस के बने पुल को पार करना होता है। इस बाँस के पुल पर चलते समय दोनों ओर कोई सहारा न होने के कारण कुट्टी गंगा की भयंकर गर्जना तीर्थयात्रियों को भय तथा उत्साह का एक साथ एहसास कराती है। गूंजी से लगभग 11किमी. दूर नामफा गाँव आता है। यहाँ रुककर यात्री हल्का विश्राम एंव कुछ जलपान कर सकते है। यहाँ से लगभग 6-7 किमी. की दूरी पर कुट्टी गाँव है। समुद्रतल से लगभग 3600 मीटर की ऊँचाई पर स्थित यह छोटा सा गाँव भोटिया लोगों का निवास स्थान है। यात्रियो के रात्री विश्राम के लिए यहाँ कुमाऊ मण्डल विकास निगम ने फाइबर ग्लास हट्स की व्यवस्था की हुई है। 

फाइबर ग्लास हट्स 

कुट्टी से जोलिंगकाँग लगभग 14 किमी. है। अब यहाँ धीरे-धीरे ऊँचाई बढ़ने के कारण साँस फूलने के साथ सिर चकराने लगता है। किन्तु मार्ग की कठिनाइयों के बावजूद तीर्थयात्री निरन्तर अपनी मंज़िल की ओर बढ़ते रहते है। जोलिंगकाँग कैंप से कुछ पहले बड़े-बड़े पत्थरों को पार करना पड़ता है।

                           

बड़े-बड़े पत्थरों को पार करते यात्री 

जोलिंगकाँग मे इंडो-तिब्बित-बार्डर पुलिस की चेक पोस्ट है जहाँ यात्रियो के सारे डॉक्युमेंट्स देखने के बाद ही आगे जाने दिया जाता है। यहाँ कु.म.वि.नि. द्वारा स्नो हट्स बनाई गई हैं जहाँ यात्रियो के रात्रि विश्राम की व्यवस्था है। अत्याधिक ठंड के कारण शाम होते ही यहाँ पारा माइनस मे चला जाता है जिस कारण यात्री भोजन करते ही अपने स्लीपिंग बैग मे घुस जाते हैं।    

स्लीपिंग बैग मे विश्राम करते यात्री 

यहाँ से आदि कैलाश पर्वत की दूरी केवल 4 किमी. रह जाती है। तीर्थयात्री फूलती हुई साँस के साथ-साथ बर्फ के ऊपर चलते हुए पार्वती सरोवर पहुँचते हैं। आदि कैलाश पर्वत की तलहटी पर बना यह सरोवर अत्यन्त मनोरम है। मौसम साफ होने पर इस पार्वती सरोवर मे आदि कैलाश पर्वत का प्रतिबिम्ब देखने योग्य होता है। ये आस्था का ही प्रतीक है कि बर्फ समान शीतल जल मे तीर्थयात्री शिव नाम की डुबकी लगाते है।

पवित्र पार्वती सरोवर 

स्नान के उपरान्त यहीं पास ही स्थित छोटे से गौरी-शंकर मंदिर मे पूजार्चना करने से मार्ग की सारी थकान दूर हो जाती है। इस मंदिर का निर्माण कुट्टी गाँव के निवासियों ने करवाया था। यह स्थान समुन्द्र तल से लगभग 4660 मीटर की ऊँचाई  पर स्थित है। 

गौरी शंकर मंदिर 

कैलाश मानसरोवर जाने मे असमर्थ यात्री पार्वती सरोवर मे स्नान तथा आदि कैलाश के दर्शन पाकर स्वयं को धन्य बनाते हैं। आदि कैलाश को छोटा कैलाश अथवा बाबा कैलाश के नाम से भी पुकारा जाता है। पृथ्वी के स्वर्ग कहे जाने वाले इस पावन स्थान पर आकर निसंदेह नास्तिक व्यक्ति भी खुद को धन्य समझते हैं। पंच कैलाशों मे एक इस परम पावन आदि कैलाश को हमारा बारंबार प्रणाम है।  

महादेव निवास आदि कैलाश पर्वत 


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2 comments:

Pratik Gandhi said...

बहुत बढ़िया जानकारी

अनिल दीक्षित said...

बहुत कम शब्दों मे भरपूर जानकारी पढ़ कर काफी अच्छा लगा।