Thursday, 23 February 2017

जहाँ तीन युगों से प्रज्ज्वलित है शिव-पार्वती विवाह अग्नि : त्रियुगीनारायण 

मुख्य मंदिर 

नागाधिराज हिमालय की परम पावन शृंखलाओं मे अनेकों ऐसे महातीर्थ हैं जिनकी अपनी विशिष्ट पहचान है। शिव एंव शक्ति की इस पावन भूमि मे तीन युगों से आस्था एंव परम विश्वास का केंद्र त्रियुगीनारायण ऐसा ही एक परम कल्याणकारी तीर्थस्थल  है। रुद्रप्रयाग से केदारनाथ जाने वाले मार्ग पर सोनप्रयाग से बाई ओर लगभग 13 किमी. की दूरी पर घने वृक्षों वाले मोटर मार्ग द्वारा त्रियुगीनारायण पहुँचा जाता है।

सोन गंगा 

यही वो पावन पवित्र स्थान है जहाँ राजा हिमाचल ने अपनी प्रिय पुत्री पार्वती का कन्यादान कर, त्रिलोकस्वामी भगवान शिव के साथ पाणिग्रहण (विवाह) करवाया था। इसी स्थान पर भगवान नारायण तथा ब्रह्मा जी ने विवाह के साक्षी होकर भगवान शिव पार्वती के हवन कुंड के समक्ष फेरे करवाये थे ।

पवित्र हवन कुंड 

केदारखंड मे ये ही वह रमणीय प्राचीन स्थान है जहाँ राजा हिमाचल के आदेशानुसार इंद्रदादि देवताओं ने उग्र तप द्वारा भगवान विष्णु हरी की प्रसन्नता हेतु लोककल्याण यज्ञ किया था। इसी पवित्र स्थान पर चतुर्भुज नारायण भगवान माँ लक्ष्मी एंव वाम भाग मे माँ सरस्वती सहित सुशोभित हैं। माँ पार्वती द्वारा पूछे जाने पर कि हे त्रिलोक के स्वामी महादेव इस उत्तम केदारखंड मे ऐसा कौन सा पुण्य स्थान है जहाँ पर मनुष्य एक बार मे अपने समस्त पापों को त्याग सकता है। तब महादेव बोले अब मै उस क्षेत्र का वर्णन करता हूँ जोकि हरी नारायण का क्षेत्र है तथा जहाँ जाने से मनुष्य स्वयं हरी के समान हो जाता है। हे गौरा ! सोनप्रयाग से पीछे त्रिविक्रिमा नदी के समीप जो नारायण तीर्थ है तथा जिसके दर्शन मात्र से ही हरी नारायण की भक्ति बढ़ती है। ऐसे परम कल्याणकारी तीर्थ मे नारायण स्वयं विराजमान रहते हैं। ऐसे परम पुनीत स्थान के दर्शन मात्र से ही मनुष्य आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाता है। महत्वफल को देने वाला ये ही वह स्थान है जिसके ऊपर रमणीक यज्ञ पर्वत है। यहाँ से ईशान दिशा मे चार मील की दूरी पर वासुकी सरोवर नामक स्थान है जहाँ पौराणिक वासुकी नाग का निवास भी था। इसी स्थान पर वासुकी नदी तथा दो अन्य गंग धाराएँ मिलकर सोन गंगा कहलाती हैं, जोकि नीचे सोनप्रयाग नामक स्थान पर केदारनाथ से आने वाली मंदाकिनी नदी मे समाहित हो जाती है। महादेव जी आगे कहते हैं कि हे पार्वती ! इस हरी पर्वत की स्थिति के कुछ चिन्ह मै तुम्हें बतलाता हूँ, जिसे जानने से मोक्ष पद की प्राप्ति होती है। धनंजय नामक अग्नि के नित्यप्रति वहाँ महाप्रज्ज्वलित होने तथा दर्शन करने से मनुष्य को मुक्ति प्राप्त होती है।

तीन युगों से  प्रज्ज्वलित शिव-पार्वती विवाह अग्नि 

इसी पवित्र अग्नि का ब्रह्मादि देवताओं ने पूजन किया था। जब से इस स्थान पर महादेव एंव माँ पार्वती का विवाह सम्पन्न हुआ है तभी से इस हवन वेदी मे अखण्ड धुनि जल रही है। जनमान्यता है कि यह अग्नि तीन युगों से निरन्तर प्रज्ज्वलित है। तीर्थयात्री इसी हवनकुंड की विभूति को अपने मस्तक पर लगाकर करुणासिंधु महादेव का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। विवाहित जोड़े बड़ी ही आस्था एंव श्रद्धा के साथ इस हवनकुंड की परिक्रमा करते हैं तथा चावल से भरी थाली चढ़ाकर अपने सुखी विवाहित जीवन की कामना करते हैं। मंदिर परिसर मे ही चार कुंड बने हुए हैं जहाँ तीर्थयात्रियों द्वारा रुद्रकुंड मे स्नान,विष्णुकुंड मे मर्जन,ब्रह्मकुंड मे आचमन तथा सरस्वतीकुंड मे तर्पण किया जाता है। ऐसे परम पवित्र तीर्थस्थल पर पहुँच कर तीर्थयात्री आत्मिक आनंद से भावविभोर होकर इस श्रेष्ठ तीर्थ को बारंबार प्रणाम करते हैं।            

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