Thursday 15 December 2016

                                नेपाल नरेश जिनके दर्शनों को नहीं जाते  - बूढ़ा  नीलकंठ 
जलमग्न बूढ़ा नीलकंठ महादेव 

देवात्मा हिमालय की अद्भुत,सौंदर्यपूर्ण एंव आलौकिक हिमछंदित घाटियों के मध्य मे स्थित नेपाल प्रदेश की महिमा अवर्णनीय है। नेपाल की राजधानी काठमांडू से लगभग 4 किमी. उत्तर दिशा की ओर शिवपुरी की मनोहर पहाड़ियों के आँचल में पत्थरों से बंधे एक चौकाकार तालाब मे जलशायी बूढ़ा नीलकंठ महादेव की विशाल एंव भव्य मूर्ति शयन मुद्रा मे विराजमान है। इस ब्रह्मांड के पालनकर्ता भगवान विष्णु जी की इस लावण्यपूर्ण मूर्ति के मुख वाले भाग को छोड़ कर प्राय: सम्पूर्ण भाग निर्मल जल के अन्दर रहता है।

                         
हिमालय की गोद मे बसा नेपाल 

"नीलकंठ" कैलाश पर्वत पर वास करने वाले भगवान शिव शंकर का ही एक नाम है। इस मूर्ति को गौर से देखने पर स्पष्टत: पता चलता है कि: शेष शैया होने के अलावा यह मूर्ति शंख,चक्र,गदा,पदम (विष्णु जी के आभूषण) से विभूषित तो है ही साथ ही इसके भाल पर त्रिपुण्ड,गले मे रुद्राक्ष की माला और बाजू मे सर्प (महादेव जी के आभूषण) भी सुशोभित हैं,जिस कारण इन्हें हरिहर की भी संज्ञा दी जाती है। अत; शेषशायी विष्णु जी की इस मूर्ति को बूड़ा नीलकंठ क्यों कहा जाता है,इसके पीछे एक किदवंती है,जिसके अनुसार प्राचीन काल मे पास के ही एक गाँव मे नीलकंठ नाम का एक बूढ़ा ब्राह्मण वास कर्ता था। वह भगवान विष्णु एंव शिव को समान भाव से पूजता था। उसी वृद्ध ब्राह्मण ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। कालांतर मे उसी के नाम से यह मंदिर बूढ़ा नीलकंठ के नाम से विख्यात हुआ।


पशुपतिनाथ मंदिर (काठमांडू)

विष्णु जी की इस सजीव एंव चित आकर्षक मूर्ति को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो ये अभी बोल उठेगी। इस मंदिर के निर्माण में बड़े बड़े चौकोर काले पत्थरों को एक के ऊपर एक जोड़कर बड़ी ही कुशलता से प्रयोग किया गया है। तालाब के बाईं ओर एक बहुत पुराना वृक्ष है,जिसके ऊपर बेहद सुंदर सफ़ेद कमल के समान फूल खिलते हैं (प्राय: कमल तालाब मे खिलते हैं)। तालाब के दायीं ओर 8-10 सीढ़ियाँ चढ़ने के उपरांत एक विशाल कक्ष है,जहाँ प्रतिदिन भजन आदि का आयोजन होता है। मंदिर परिसर के अंदर ही अनेक छोटे-छोटे मंदिर हैं जिनमें शिव -पार्वती,हनुमान जी,गणेश जी,माँ दुर्गा आदि देवी-देवताओं कि सुंदर मूर्तियाँ स्थापित हैं। इस मंदिर की एक खास विशेषता यह भी है कि नेपाल प्रदेश के कोई भी महाराजा इस मंदिर मे भगवान बूढ़ा नीलकंठ के दर्शन करने के लिए नही आते। नेपाली हिन्दू अपने राजा को भगवान विष्णु का ही अवतार मानते हैं और बेहद श्रद्धा भाव से पूजते हैं।  प्राचीन काल मे राजा प्रतापमल ने यह परम्परा स्थापित की थी कि अब से कोई भी राजा  भगवान बूढ़ा नीलकंठ के दर्शन नही करेगा,क्योंकि उनका मानना था कि विष्णु स्वयं अपने प्रतिरूप के दर्शन को जाये,ये एक हास्यस्पद बात लगती है। आज भी इस परम्परा को मानते हुए नेपाल के राजा बूढ़ा नीलकंठ के दर्शन करने नहीं जाते। तीर्थयात्री चारो ओर मनोहारी पहाड़ियों से घिरे इस स्थान पर हरिहर भगवान के दर्शन पाकर भाव  विभोर हुए बिना नही रह पाते।



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