प्रकृति की अनुपम कृति : ॐ पर्वत
भोजन करते हुए कैलाश यात्री |
त्रिलोकपूजित महादेव शिवजी के मुख से सर्वप्रथम ओंकार (ॐ) प्रकट हुआ,जोकि महाकल्याणकारी मंत्र के रूप मे समस्त मंत्रों मे प्रथम स्थान पर लगता है। करोड़ों मंत्रों को प्रकट करने वाले वेद,और वेदों को प्रकट करने वाली माँ गायत्री भी ॐ से प्रकट हुई हैं। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सभी सौरमंडलों का,सम्पूर्ण सृष्टि का बिन्दु एंव नाद से युक्त स्वर ॐ साक्षात निर्गुण-निराकार ब्रह्मा जी का ही अक्षर रूपी साकार रूप है। प्रकृति का ये सनातन नियम है कि कोई भी मनुष्य शरीर त्यागने के पश्चात ही स्वर्ग के दर्शनों का पुण्य प्राप्त कर सकता है। किन्तु हमारे महादेव जी ने हम निकृष्ट मनुष्यों पर अनुकंपना करने हेतु हिमालय की इन मनोरम वादियों में बर्फ से ॐ (पर्वत) की रचना की है,जोकि स्वर्ग दर्शन की अनुभूति से किसी प्रकार कम नहीं है।
ITBP जवानों के साथ कैलाश यात्री |
कुमाऊँ मण्डल विकास निगम द्वारा संचालित परम पावन कैलाश मानसरोवर (तिब्बित) महायात्रा के मार्ग मे पड़ने वाले पड़ाव नवीडांग से इस पुनीत पर्वत के दर्शन तीर्थयात्रियों को होते हैं। सीमांत क्षेत्र होने के कारण तीर्थयात्रियों एंव प्रकृति प्रेमियों को यहाँ पहुँचने के लिए धारचूला मे ही जिला अधिकारी से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है,जोकि अत्यंत आवश्यक है। यात्री धारचुला से जीप द्वारा मंगती पहुँच सकते हैं,जहां से लगभग 60-65 किमी. का पैदल श्रम साध्ये मार्ग व दुर्गम पर्वतिए रास्तों को तय करके नवी डांग पहुँचना पड़ता है। भयंकर गर्जना एंव तीव्र वेग से प्रवाहित होने वाली काली नदी के साथ-साथ चलते हुए यात्री गाला,बूंदी एंव गूंजी होते हुए काला पानी पहुँचते हैं। यहाँ पर भारत-तिब्बित सीमा पुलिस के जवान अनुमति पत्र देखने के पश्चात ही यात्रियो को आगे जाने की इजाज़त देते है। काला पानी से नवी डांग 8 किमी. की दूरी पर स्थित है। मार्ग मे फैली अलौकिक सुंदरता एंव सुरमई पर्वतीय नज़ारों को निहारते हुए यात्री नवीडांग कैंप पर कब पहुँच जाते हैं,उन्हे पता ही नहीं चलता। सांगचुंता नदी के किनारे स्थित इस कैंप के समीप भारत,तिब्बित व टींकर (नेपाल) की सीमा आपस मे मिलती हैं। पड़ाव के ठीक सामने एक अद्भुत पर्वत के दर्शन तीर्थयात्रियों को होते हैं,जिस पर ॐ के आकार की प्रकृति द्वारा बर्फ निर्मित छवि दिखाई देती है। पर्वत पर ॐ की स्पष्टता को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि मानो लोक-लोकांतर के सृष्टिक्रम को संचालित करने वाले कैलाश निवासी सदाशिव भोले भण्डारी जी ने स्वयं अपने हाथों से इसे लिखा हो। ॐ पर्वत के दर्शनों के पश्चात तीर्थयात्रियों के मन मे केवल एक ही विचार आता है कि मानव निर्मित कोई भी आकृति,प्राकृतिक कृति से अच्छी नहीं हो सकती।
प्रकृ भारतिए अbharनुपbharम कृति : ॐ प
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1 comment:
बहुत ही प्यारी जानकारी दी है । नमन उस सृष्टिकर्ता को...जय हो
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