देवलोक की यात्रा : मणि महेश कैलाश
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पवित्र मणि महेश कैलाश एंव झील
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विश्व मे भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ कई प्रकार की विविधताएं देखने को मिलती हैं। तीर्थाटन एंव पर्यटन की दृष्टि से यहाँ की हिमछिंदित पर्वत शृंखलाएँ,गहरे समुन्द्र,देवतुल्य नदियाँ,मीलों फैले रेगिस्तान,हरियाली से सराबोर टापू,घने जंगल इत्यादि सभी को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। उत्तर भारत मे स्थित हिमाचल प्रदेश को देव भूमि के नाम से भी पुकारा जाता है। यहाँ के कई सिद्ध पीठों मे वर्ष भर लाखों की संख्या मे दर्शनार्थी पहुँचते हैं। प्राचीन काल से ही धर्म यात्रायें हमारे जीवन का अभिन्न अंग रही हैं। इन महान यात्राओं के अभिलाषी भक्त बड़े ही श्रद्धा भाव से कई प्रकार के कष्ट उठाते हुए अपने आराध्य देव के दर्शनों हेतू इन तीर्थस्थलों पर पहुँचते हैं। हिमाचल प्रदेश की इस हरी भरी भूमि पर आकर पर्यटकों एंव तीर्थयात्रियों का मन प्रफुल्लित हो जाता है। मीलों लंबी फैली यहाँ की घाटियाँ,सर्पीले पहाड़ी मार्ग,मधुर संगीत बिखेरते यहाँ के झरने,शांत एकान्त रमणीक स्थान तथा बर्फीली चोटियाँ इस प्रदेश की सुंदरता को कई गुना बड़ा देते हैं।
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हरियाली से सराबोर हिमालय
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इस देवभूमि मे ऐसी ही आलौकिक एंव परम कल्याणकारी धर्म यात्रा है मणि महेश झील एंव कैलाश पर्वत की। हिमाचल के चम्बा जिले मे स्थित इस पवित्र स्थान की यात्रा मे प्रतिवर्ष पंजाब, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, दिल्ली इत्यादि सम्पूर्ण भारत से लाखों की संख्या मे श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। जन्माष्टमी से राधाष्टमी तक लगने वाले इस मेले में पवित्र छड़ी मुबारक के साथ भारी संख्या मे साधू-सन्यासी भी सम्मिलित होते हैं।
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मणि महेश कैलाश की तलहटी पर लेखक
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तीर्थयात्रियों को मणि महेश पहुँचने के लिए सर्वप्रथम राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित पठानकोट शहर पहुँचना होता है। सम्पूर्ण भारत से ये शहर रेल एंव सड़क मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। पठानकोट के महाराणा प्रताप इंटर स्टेट बस अड्डे से यात्रियो को थोड़े-थोड़े समय के उपरान्त चम्बा के लिए बस उपलब्ध हो जाती है। पठानकोट का यह बस अड्डा स्वच्छ एंव सुंदर बना हुआ है। यात्री चाहें तो निजी वाहन अथवा टैक्सी द्वारा भी चम्बा पहुँच सकते हैं। पठानकोट से ऊपर पहाड़ी मार्ग आरम्भ हो जाता है। हरियाली से परिपूर्ण सुंदर वादियाँ तीर्थयात्रियों एंव पर्यटकों के मन को मोह लेती हैं। मार्ग घुमावदार होने के कारण यात्रियो को कई बार डर भी लगता है किन्तु मन मे उमंग एंव मुख पर महादेव के जयकारे समस्त बाधाओं को हर लेते हैं। मार्ग मे कई छोटे-छोटे गाँवों से होकर गुजरना पड़ता है,यह मार्ग सर्पीला होने के साथ साथ आकर्षक भी है। कई बार मार्ग मे कोहरा होने से यात्रियो को ऐसा प्रतीत होता है मानो वे बादलों मे सफर कर रहे हैं। कोहरा छटते ही पुनः हरी भरी वादियाँ नज़र आने लगती हैं। पठानकोट से चम्बा पहाड़ी सड़क मार्ग द्वारा लगभग 122 किमी. की दूरी पर स्थित है। इसी मार्ग पर बैनी खेत से एक मार्ग हिमाचल के सुप्रसिद्ध पर्यटक स्थल डलहोज़ी एंव खजियार को जाता है। मार्ग के दोनों ओर कई छोटे-बड़े ढाबे हैं जहाँ यात्री चाय-नाश्ता एंव भोजन कर सकते हैं। मार्ग की हरियाली को अपनी आखों में समेटते हुए यात्री कब चम्बा पहुँच जाते हैं इसका उन्हे एहसास ही नहीं होता। रावी नदी के किनारे बसा चम्बा शहर समुन्द्र तल से लगभग 996 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। चारों ओर हरियाली से परिपूर्ण पहाड़ों से घिरा यह नगर पुरातत्व एंव धार्मिक दोनों ही दृष्टि से अद्वितीय है। सातवीं शताब्दी मे राजा साहिल वर्मा ने इस शहर को बसाया था। श्री लक्ष्मी नारायण मंदिर चम्बा शहर का मुख्य मंदिर है। यह देवालय छ: मंदिरों का समूह है जिनमे तीन मंदिर भगवान विष्णु जी को तथा तीन मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं। शिखर शैली मे निर्मित इस मन्दिर मे भगवान लक्ष्मी नारायण,राधा-कृष्ण,चन्द्रगुप्त,महादेव शिव,त्र्यंबकेश्वर एंव लक्ष्मी-दामोदर की मूर्तियाँ शोभायमान हैं।
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लक्ष्मी नारायण मंदिर (चम्बा)
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लक्ष्मी-नारायण मंदिर के पास ही स्थित है चम्पावत मंदिर। मंदिर के अन्दर नाग देवता की मूर्ति स्थापित है। नाग पंचमी के दिन काफी संख्या में श्रद्धालु यहाँ आकर नाग देवता को नाना प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाकर उन्हें प्रसन्न करते हैं। इस दिन ब्रह्म महूर्त से ही मंदिर मे भक्तों का आना आरम्भ हो जाता है। हरे-भरे घास के मैदानो को यहाँ चौगान कहा जाता है। शहर के बीचो बीच चम्बा का मुख्य चौगान है। इसके मुख्य द्वार पर चम्बा शताब्दी मुख्य द्वार लिखा हुआ दिखाई देता है। श्रावण मास मे चम्बा शहर के इस चौगान मे विश्वप्रसिद्ध अंतर्राष्ट्रीय मिंजर मेले का आयोजन किया जाता है। चम्बा मे अन्य कई मंदिर भी दर्शनीय हैं। चम्बा के छोटे से बस अड्डे पर भरमौर जाने के लिए बस सेवा उपलब्ध हो जाती है। उत्तर भारत के विभिन्न शहरों से चम्बा का ये बस अड्डा राज्य परिवहन की बस सेवा से जुड़ा हुआ है। चम्बा से लगभग 65 किमी. की दूरी पर स्थित है भरमौर। रावी नदी के साथ-साथ मार्ग भरमौर तक पहुँचता है। चम्बा से भरमौर तक का मार्ग कई स्थानों पर बेहद संकीर्ण है। घुमावदार रास्तों से होते हुए यात्री भरमौर पहुँचते हैं।
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अपनी भेड़ों के बीच गद्दी
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समुन्द्र तल से लगभग 2195 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है भरमौर। प्राचीन काल मे इस स्थान को ब्रह्मपुर के नाम से जाना जाता था। हिमाचल का यह जनजातीय क्षेत्र भेड़ बकरी चराने वाले गद्दी लोगों का निवास स्थान है। ग्रीष्मकाल मे यह गद्दी लोग अपनी भेड़ बकरियों को चराने के लिए ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों मे ले जाते हैं। ये गद्दी लोग भगवान शिव को अपना आराध्य देव मानते हैं। इस जन जातीय क्षेत्र के लोग भगवान शिव की कल्पना हुक्का लिए शिव के रूप मे करते हैं। शिव भूमि भरमौर में मणि महेश यात्रा के समय लाखों की संख्या मे श्रद्धालु पहुँचते हैं। जन्माष्टमी से राधाष्टमी तल यहाँ एक भव्य मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे भारत के विभिन्न प्रान्तों से शिवभक्त बड़े उत्साह के साथ सम्मिलित होते हैं।
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चौरासी मन्दिर भरमौर
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यहीं शहर के मध्य मे ही स्थित है चौरासी मंदिर। चौरासी का यह विशाल मंदिर अपनी उत्कृष्ट पहाड़ी शैली के कारण श्रद्धालुओं एंव पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर का निर्माण राजा मेरु वर्मा ने लगभग 7वीं शताब्दी मे करवाया था।
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श्री धरमेश्वर महादेव मन्दिर (भरमौर)
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मंदिर परिसर मे ही धरमेश्वर महादेव मंदिर स्थित है। मंदिर मे एक विशाल शिवलिंग स्थापित है। पुजारी जी शिवलिंग का बड़ा ही सुन्दर शृंगार करते हैं। यहीं साथ ही मे चित्रगुप्त का भी स्थान है तथा पास ही अर्धगंगा कुंड भी है। मंदिर परिसर मे ही एक ओर ब्राह्मणी माता के चिन्ह दिखाई देते हैं। यहीं पास ही लखना माता का मंदिर है। अखरोट की लकड़ी से बना यह मंदिर हिमाचल की विशिष्ट कारीगिरी का नमूना है। मंदिर की बेजोड़ नक्काशी देखने योग्य है। इस मंदिर समूह के बीच यहाँ का प्रमुख शिव मंदिर स्थित है। एक बड़े से चबूतरे पर निर्मित इस मंदिर के अन्दर मुख्य शिवलिंग स्थापित है। शिखर शैली मे बने इस मंदिर मे भक्तजन बड़े ही श्रद्धा भाव से पूजार्चना करते हैं। तीर्थयात्री महादेव के आगे शीश नवाकर अपनी मणि महेश कैलाश यात्रा के निर्विघ्न सम्पन्न होने की कामना करते हैं। कुछ भक्त मंदिर प्रांगण मे यज्ञ एंव पूजा के द्वारा भगवान शिव को प्रसन्न कर मनवांछित फल प्राप्त करते हैं।
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मेला मणि महेश
मेले के दौरान मंदिर परिसर मे ही "गूर" बैठे मिलते हैं। पृथ्वी पर भगवान शिव के दूत माने जाने वाले इन गूरों के प्रति भक्तों की अपार श्रद्धा देखने को यहाँ मिलती है। स्थानीय लोग इनसे अपनी समस्याओं का समाधान पूछते हैं। राधाष्टमी के दिन मणि महेश झील पर पर्व आरम्भ होने पर केवल ये गूर ही झील के बर्फ समान ठंडे जल को पार करते हैं। जो व्यक्ति इन्हे सबसे पहले छू लेता है उनके प्रश्नों का उत्तर ये सबसे पहले देते हैं। यह परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। मुख्य मंदिर के सामने पीतल से बनी 5 फुट ऊँची नंदी बैल की प्रतिमा प्रतिष्ठित है। कुछ श्रद्धालु नंदी जी के पैरों के बीच मे से लेटकर निकलते हैं,उनका विश्वास है कि ऐसा करने से उन्हे मनुष्य योनी मे दोबारा नहीं आना पड़ेगा। चौरासी मंदिर समूह मे ही छोटे से मन्दिर के भीतर संगमरमर से बनी जय श्री कृष्ण गिरी महाराज की मनोहारी मूर्ति स्थापित है।यह स्थान इन महान तपस्वी जी की तपोभूमि रही है। मणि महेश यात्रा के दोरान मन्दिर परिसर मे ही लगने वाले छोटे से बाज़ार मे सभी प्रकार की धार्मिक वस्तुएँ उपलब्ध हो जाती हैं। तीर्थयात्री धार्मिक पुस्तकें,यात्रा डी. वी. डी., प्रसाद इत्यादि यहीं से खरीदकर अपने घरों को ले जाते हैं। बाज़ार मे खाने पीने के भी स्टॉल लगे होते हैं। मणि महेश यात्रा के समय मौसम खराब होने की आशंका सदैव बनी रहती है। किसी भी समय बर्फबारी अथवा वर्षा आरम्भ हो जाती है,इसलिए तीर्थयात्रियों को अपने साथ रेन कोट,छाता,टॉर्च तथा गर्म ऊनी वस्त्र इत्यादि आवश्यक सामग्री सदैव अपने पास रखनी चाहिए। तीर्थयात्रियों को यात्रा मे उपयोग होने वाली सभी सामग्री यहीं से लेकर आगे बढ़ना चाहिए। रात्रि के समय मन्दिर परिसर का सम्पूर्ण क्षेत्र बिजली की रोशनी से जगमगा उठता है।
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ब्रह्मानी देवी मन्दिर
शहर से थोड़ी ऊँचाई पर माँ ब्रह्मानी देवी का मन्दिर स्थित है। मन्दिर तक पहुँचने के लिए दो मार्ग उपलब्ध हैं। प्रथम पैदल मार्ग लगभग एक-डेढ किलोमीटर खड़ी चड़ाई वाला है जबकि दूसरे मार्ग से यात्री लगभग 5-6 किमी. का मार्ग जीप द्वारा भी तय कर सकते हैं। खड़ी चड़ाई वाला मार्ग भरमौर शहर के बीच से होता हुआ मन्दिर तक पहुँचता है। तीर्थयात्री फूलती हुई साँस के साथ धीरे धीरे मन्दिर की ओर बढ़ते हैं। भरमौर क्षेत्र मे सेबों व राजमा की खेती होती है। सेबों से लदे वृक्ष इस क्षेत्र की सुंदरता को कई गुना बड़ा देते हैं। गाँव की महिलाएं राजमा साफ करके नीचे मैदानी क्षेत्रों मे बेचने के लिए भेजती हैं। मेले के दौरान स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा लगाये गये भंडारों मे भोजन का आनन्द ही कुछ और होता है। तीर्थयात्री फूलती हुई साँस के साथ जयकारे लगाते हुए ब्रह्मानी देवी मन्दिर पहुँच जाते हैं। एक प्राचीन दंत कथा के अनुसार माँ ब्रह्मानी देवी चौरासी मन्दिर क्षेत्र मे ही निवास करती थी। एक बार भगवान शिव भ्रमण करते हुए यहाँ आये और उन्होने इस क्षेत्र मे अपनी धुनि रमा दी। जिससे रुष्ट होकर माँ इस शिखर पर आ गईं। तब महादेव शिव ने उन्हे प्रसन्न करने हेतु वरदान दिया कि मणि महेश की यात्रा मे मुझसे पहले तुम्हारे दर्शन करने वाले भक्तों को ही यात्रा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होगा। भक्तजन मन्दिर पहुँचकर सर्वप्रथम यहाँ स्थित एक छोटे से कुण्ड के जल मे स्नान करते हैं। ये उनकी अपार श्रद्धा एंव विश्वास ही है जो उन्हे इतने बर्फीले जल मे स्नान करने को प्रेरित करता है। स्नान के उपरान्त भक्त लाल चुनरी एंव पूजन सामग्री के साथ पूजार्चना करके माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
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पवित्र छड़ी मुबारक
मणि महेश यात्रा की पवित्र छड़ी मुबारक चम्बा शहर के चरपट मोहल्ले मे स्थित चरपट नाथ मन्दिर से आरंभ होकर विभिन्न पड़ावों पर विश्राम करती हुई राधाष्टमी से दो दिन पूर्व भरमौर के चौरासी मन्दिर पहुँचती है। इस छड़ी यात्रा मे चरपट मन्दिर के पुजारी छड़ी लेकर चलते हैं। उनके साथ इस महायात्रा मे दसनामी अखाड़े के कई साधू सन्यासी भी सम्मिलित होते हैं। अगले दिन प्रातः काल छड़ी की विधिवत पूजार्चना के पश्चात साधू सन्यासी व अन्य भक्तजन पुनः एकत्रित होकर पैदल ही हडसर की ओर बढ़ते हैं। पैदल चलने मे असमर्थ लोग 17 किमी. का मार्ग मोटर वाहन द्वारा तय करते हैं। भरमौर से आगे का मार्ग काफी संकरा होने के कारण कई बार आमने सामने से वाहन आने पर बड़ी ही सावधानीपूर्वक वाहनों को आगे बढ़ाना होता है। मणि महेश यात्रा का अंतिम मोटर मार्ग हडसर एक छोटा सा गाँव है।
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मोटर मार्ग
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यहाँ से मणि महेश तक 13 किमी. का सम्पूर्ण पैदल मार्ग कठिन एंव पथरीला है। हडसर मे भी कई स्वयं सेवी संस्थाएँ तीर्थयात्रियों के लिए भंडारे का आयोजन करती हैं। तीर्थयात्री हडसर से अपनी पैदल यात्रा आरम्भ कर धनछौ की ओर बढ़ते हैं। हडसर से धनछौ की दूरी लगभग 6 किमी. है। खड़ी चड़ाई वाले इस मार्ग पर तीर्थयात्री हर-हर,बम-बम के जयकारे लगाते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ते हैं। पैदल चलने मे असमर्थ तीर्थयात्री हडसर से ही घोड़ों पर अपनी यात्रा आरम्भ करते हैं। गगनचुंबी शिखरों के मध्य से होते हुए ये पैदल मार्ग प्राकृतिक हरियाली से परिपूर्ण है। मार्ग मे जिस ओर दृष्टि डालो हरियाली ही हरियाली ही दिखाई देती है। मणि महेश तीर्थ यात्रा मे कई बहुमूल्य छोटी छोटी वनस्पतियाँ पायी जाती हैं। मार्ग मे बहने वाले झरने यात्रा की सुंदरता को कई गुना बड़ा देते हैं। महादेव शिव की भूमि मे यात्रा करते हुए तीर्थयात्रियों को स्वर्गारोहण का एहसास होता है। मार्ग मे जगह जगह लगे हुए भंडारों मे स्वयं सेवक बड़े ही प्रेम से तीर्थयात्रियों को भोजन एंव जलपान कराते हैं। प्राचीनकाल से ही भारत की संस्कृति रही है कि स्वयं भोजन करने से पहले दूसरों को भी भोजन कराना चाहिए। भोजन एंव कुछ देर विश्राम के उपरान्त यात्री पुनः धनछौ की ओर बढ़ते हैं। कुछ तीर्थयात्री मार्ग मे बहने वाले स्वच्छ जल के झरने मे स्नान का आनन्द उठाते हैं। शीतल जल मे स्नान करने से यात्रा मार्ग की सारी थकान स्वयं ही दूर हो जाती है। यात्री स्नान के उपरान्त दोगुने जोश के साथ पुनः आगे की यात्रा आरंभ करते हैं। इतनी ऊँचाई वाले मार्ग पर यात्रा करते हुए कई बार यात्रियो का स्वास्थ बिगड़ जाता है। कुछ स्वयं सेवी संस्थाएं ऐसे यात्रियो को निशुल्क दवाइयाँ एंव डॉक्टरी सुविधा उपलब्ध कराती हैं। किन्तु फिर भी तीर्थयात्रियों को दैनिक प्रयोग मे आने वाली दवाइयाँ अपने साथ अवश्य रखनी चाहिये। धनछौ के छोटे से पड़ाव पर तीर्थयात्रियों के रात्री विश्राम के लिए टेंट उपलब्ध हैं। यहाँ कुछ छोटी दुकानों मे यात्रियो के रहने एंव खाने पीने की व्यवस्था हो जाती है। हिमाचल टूरिज़म द्वारा भी यहाँ छोटे छोटे टेंट लगाये जाते हैं जहाँ तीर्थयात्री शुल्क देकर रात्री विश्राम कर सकते हैं। धनछौ मे बहने वाला झरना अत्यन्त मनोहारी है। तीर्थयात्री रात्री विश्राम के पश्चात मणि महेश के लिए अपनी यात्रा पुनः आरम्भ करते हैं।
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धनछौ पड़ाव
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धनछौ से मणि महेश के लिए दो मार्ग उपलब्ध हैं। भैरो घाटी एंव बंदर घाटी। प्रायः तीर्थयात्री भैरो घाटी मार्ग से ही अपनी यात्रा सम्पन्न करते हैं। बंदर घाटी मार्ग अत्यन्त दुर्गम एंव कठिन है। तीर्थयात्री शिव जयकारे एंव सुन्दर सुन्दर भजन गाते हुए मार्ग मे अनेक घुमावदार मोड़ो एंव संकरे मार्गो से धीरे धीरे आगे बढ़ते रहते है। पहाड़ो की ऊँचाई के साथ साथ यात्रियो की साँस फूलने लगती है। किन्तु इन सब कठिनाइयो के बावजूद महादेव के दर्शनों की अभिलाषा उन्हे निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। मार्ग मे एक स्थान पर पहाड़ के भीतर से जल की आवाज सुनाई देती है किन्तु जल दिखाई नहीं देता। इस स्थान को शिव की घराट कहा जाता है। मणि महेश झील से लगभग 1 किमी. पहले गौरीकुण्ड नामक स्थान है जहाँ केवल महिलायें ही स्नान करती हैं। यहाँ से आगे का मार्ग खड़ी चड़ाई वाला है।
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मार्ग मे सुन्दर झरने का नज़ारा
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समुन्द्र तल से लगभग 13500 फुट की ऊँचाई पर स्थित मणि महेश झील हिन्दू जनमानस के लिए अत्यन्त पूज्यनीय स्थान है। यह घाटी चारों ओर बड़े बड़े पत्थरों से घिरी हुई है। इस पवित्र झील का घेरा लगभग 400 फुट का है। मणि महेश की बर्फीली घाटी मे पहुंचते ही तीर्थयात्रियों का तन एंव मन अपार श्रद्धा से भर जाता है। उन्हे विश्वास ही नहीं होता कि इतने कठिन पहाड़ी मार्ग को पार कर वह कैसे यहाँ तक पहुँच पाये हैं। मणि महेश झील के ठीक सामने स्थित कैलाश पर्वत के दर्शन पाकर भक्तजन अत्यन्त भाव विभोर हो जाते हैं। महादेव कैलाशपति की पावन भूमि के स्पर्श मात्र से ही उनका रोम-रोम पुलकित हो जाता है। इस घाटी मे पहुँचकर सच मे ऐसा लगता है कि "शिव कैलासों के वासी : धौलीधारों के स्वामी संकर-संकट हरणा"।
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मणि महेश कैलाश की तलहटी पर आवास व्यवस्था
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सूर्य की प्रथम किरण पड़ते ही पवित्र कैलाश पर्वत मणि के समान चमक उठता है। शायद इसी लिए ही इस पवित्र पर्वत को मणि महेश कैलाश कहा गया है। मणि महेश पर्वत पर मानव आकृति की दो खड़ी चट्टानें दिखाई देती हैं। जनमान्यता के अनुसार इनमे से एक छवि साधू की तथा दूसरी छवि एक चरवाहे की है। दोनों ने ही कैलाश पर्वत पर चढ़ने का प्रयत्न किया जिस कारण देव प्रकोप से वे चट्टान बन गए। कैलाश पर्वत की चोटी पर बर्फ एंव वर्षा के कारण प्रायः धुंध छाई रहती है। सम्पूर्ण घाटी का दृश्य अलौकिक एंव पूज्यनीय है।
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पवित्र मणि महेश झील
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तीर्थयात्री यहाँ पहुँचकर सर्वप्रथम मणि महेश झील मे स्नान कर अपने तन एंव आत्मा को शुद्ध बनाते हैं। जिस बर्फीले जल मे एक डुबकी लगाना भी अत्यन्त कठिन कार्य होता है उसमे श्रद्धालुजन अपना सम्पूर्ण साहस बटोरकर हर-हर महादेव का जाप करते हुए एक साथ कई डुबकियाँ लगा लेते हैं। प्रतिवर्ष जन्माष्टमी से राधाष्टमी तक लाखों की संख्या मे भक्त यहाँ पहुँचकर इस पवित्र झील मे स्नान कर मणि महेश कैलाश के दर्शन करते हैं। राधाष्टमी के दिन सिद्धि आरम्भ होने पर झील का जलस्तर स्वयं बढ़ने लगता है। सिद्धि के समाप्त होने पर जलस्तर पुनः वापसी अपने स्थान पर पहुँच जाता है। हिन्दू जनमानस की ये प्रबल आस्था रही है कि जहाँ देवाधिदेव महादेव साक्षात निवास करते हैं वहाँ किसी मन्दिर की आवश्यकता ही नहीं है। इसलिए मणि महेश कैलाश की तलहटी पर कोई भी पक्का मन्दिर नहीं है।
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प्राचीन त्रिशूल
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झील के पास ही खुले आकाश के नीचे एक शिवलिंग स्थापित है जिसके चारों ओर हज़ारो वर्ष पुराने त्रिशूल गढ़े हुए हैं। भक्तजन शिवलिंग पर धूप,दीप,जल,पुष्प,पंचामृत इत्यादि अर्पित कर विधिवत पूजार्चना करते हैं। ऐसे पावन पुनीत स्थान पर आकर की गई थोड़ी सी भी पूजा अर्चना अत्यन्त पुण्यफलदायी एंव कल्याणकारी होती है। देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, आदि सभी का निवास इस शिव भूमि मे है। मणि महेश कैलाश की इस भूमि मे आकर भक्तों को कई आलौकिक अनुभवों का आभास होता है। उन्हे लगता है कि मानो वे भौतिक संसार को छोड़कर देवलोक मे आ गए हैं। कैलाश निवासी भोलेनाथ की इस पावन भूमि के स्पर्श मात्र से ही मनुष्य के जन्म जन्मांतर के पाप स्वयं ही धुल जाते हैं। मणि महेश झील मे स्नान एंव कैलाश पर्वत पर विराजित महादेव का ध्यान मनुष्य को चौरासी लाख योनियों के आवागमन से मुक्ति दिला देता है। जीवन भर याद रहने वाली महादेव शिव के निवास स्थान की इस यात्रा को हमारा शत शत नमन है।
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