Saturday 26 November 2016

              

       स्तंभेश्वर महादेव - जहाँ कार्तिकेय जी ने क्षमा माँगी 



जलमग्न स्तंभेश्वर महादेव 

अनादिकाल से आर्य भूमि भारत वर्ष,अनेकों चमत्कारों एंव अवतारों से अभिभूत होती आई है। इस महान भूमि पर कई एसे रहस्यमय तीर्थ स्थान हैं,जिनकी जानकारी आम मनुष्य के लिए अभी भी विस्मय व आश्चर्य का विषय है। ऐसा ही एक महातीर्थ भारत के पश्चिमी राज्य गुजरात के अंतिम छोर पर समुद्र तट के निकट महिसागर स्तंभेश्वर महादेव के नाम से स्थित है। समुद्र से लगभग 300-400 गज की दूरी पर स्तंभेश्वर शिवलिंग स्थापित है,जहां प्रतिदिन दो बार समुद्र का जल अपने आप आगे बढ़ता है तथा इस आलौकिक शिवलिंग को पूरी तरह जल से ढक देता है। इस विचित्र व रहस्यमयी प्राकृतिक प्रक्रिया को देखकर ऐसा प्रतीत होता है,मानो स्वयं समुद्र देवता कैलाशपति महादेव का जलाभिषेक करने आये हैं। तिथि के अनुसार चलने वाली यह प्रक्रिया किसी भी मनुष्य को आचंभित व रोमांचित करने के लिए पर्याप्त है। सतयुग मे इस महातीर्थ पर कार्तिकेय जी ने अति कठोर तप किया था,जिस कारण उनके मन मे अहंकार की उत्पत्ति हुई। तब धर्म देवता ने इस तीर्थ राज को स्तम्भ अर्थात गर्व के कारण अप्रसिद्ध होने का श्राप दे डाला,किन्तु कार्तिकेय जी के क्षमा याचना करने पर धर्म देवता ने इस श्राप का निवारण इस प्रकार किया कि ज्यों ज्यों कलयुग बढ़ेगा,इस तीर्थ की विख्याति चारों और फैलेगी। अभी तक इस तीर्थ के गुप्त होने का यही प्राचीन वृतांत है।
दुग्धाभिषेक स्तंभेश्वर महादेव 

स्कन्द पुराण के कुमारिका खंड में नारद जी के यह पूछने पर कि इस पृथ्वी पर श्रेष्ठ,रमणीय एंव मनोरम तीर्थ कौन सा है,तो महर्षि भृग जी बोले कि महिनाम से प्रसिद्ध एक परम पावन नदी है,जो सर्व तीर्थमयी होने के साथ ही परम कल्याणकारी भी है। वह देखने मे मनोरम,सौम्य तथा महापापों का विनाश करने वाली पुण्य सलिला है। यदि कोई मनुष्य एक स्थान में सब तीर्थों का संयोग पाना चाहता है तो परम पुण्यमयी महिसागर संगम तीर्थ ही वह दुर्लभ स्थान है जिस स्थान पर मही नदी और समुद्र का संगम होता है। यही वो स्तम्भेश्वर तीर्थ है, जो तीनों लोकों मे विख्यात है। यहाँ जो मनुष्य स्नान करते हैं,वे सब पापों से मुक्त हो जाने के कारण यमराज के समीप नहीं जाते। महिसागर नामक गुप्त क्षेत्र में पूर्णिमा एंव अमावस्या को किया हुआ स्नानदानजप, होम और विशेषतः पिंडदान सब अक्षय होता है। पूर्वकाल में देवऋषि नारद के यहाँ वास करने पर शनिदेव जी ने उन्हे यह वरदान दिया कि जिस समय शनिवार के दिन अमावस्या हो, उस दिन यहाँ श्रद्धापूर्वक स्नान व दान करने पर अथवा श्रावण मास के शनिवार को अमावस्या तिथि व उसी दिन सूर्य की संक्रांति एंव व्यतिपात योग होने पर इस तीर्थ में किया गया कोई भी पुण्य कार्य महाफलदायक होगा। 

पुष्पाभिषेक स्तम्भेश्वर महादेव 

कार्तिकेय जी की भक्ति से प्रसन्न होकर कैलाश शिखर पर निवास करने वाले महादेव भोलेनाथ जी ने उन्हे यह आशीर्वचन दिया कि मैं सदैव यहीं निवास करूंगा अथवा जो मनुष्य बैसाख मास पूर्णिमा को नाना प्रकार के उत्तम कलशों द्वारा विधिपूर्वक सुगंधयुक्त जल से कुमकुम, पुष्पमाला, चन्दन, तंबूल, काजल, ईख, लवण और जीरा यह आठ सौभाग्यसूचक वस्तुओं से इस शिवलिंग की पूजा अर्चना करेगा, वह सदैव प्रसन्नतापूर्वक आरोग्य, पुत्रवान, धन तथा उत्तम सुख को प्राप्त होगा। यहाँ एक आश्रम का भी निर्माण किया गया है, जिसमे प्राचीन तपोवन शिक्षा के प्रचार-प्रसार हेतु बच्चों को वैदिक शिक्षा निःशुल्क प्रदान की जाती है। कावी निवासी श्री बंसीधर भट्ट जी के अनुसार श्रावण मास मे यहाँ बहुत भारी मेला लगता है तथा स्तंभेश्वर महादेव शिवालय में महारुद्राभिषेक व लघुरूद्रि पाठ का आयोजन किया जाता है। 
गुजरात के बड़ौदा अथवा बरुच शहरों से स्तंभेश्वर तीर्थ की दूरी लगभग 80-85 किलोमीटर है। तीर्थयात्री व रहस्यमयी जलाभिषेक (समुद्र देवता द्वारा) देखने के इच्छुक व्यक्ति गुजरात पथ परिवहन व निजी वाहन द्वारा सड़क मार्ग से जम्बू शहर (50-55 किलोमीटर) होते हुए कावी (30 किलोमीटर) पहुँच सकते हैं।  

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