Sunday 20 November 2016

          कैलाश मानसरोवर -आध्यात्मिक चेतना की विराट अनुभूति
शिव स्थली में महादेव का आशीर्वाद

सृष्टि के संचालक शिव शक्ति का निवास स्थान परम पवित्र कैलाश मानसरोवर सदा से ही सम्पूर्ण संसार को अपनी ओर आकर्षित करता रहा है। अनादि काल से ही कैलाश भूमि शास्त्रों मे सबसे पावन पुनीत क्षेत्र के रूप में चिंतकों, दार्शनिकों, कवियों एंव भक्तों की आस्था का अटूट केंद्र रही है। युगों - युगों से कैलाश के श्वास से ही सारी सृष्टि सुवासित होती आई है। इस आलौकिक भूमि पर आने के पश्चात ही इस बात की विराट अनुभूति होती है कि देवाधिदेव महादेव सदाशिव भोलेनाथ जी ने अपना निवास इसे ही क्यूँ चुना। भगवान शिव एंव माँ पार्वती की परम प्रिये क्रीड़ास्थली कैलाशभूमि पुरुष एंव प्रकृति अर्थात शिव और शक्ति के साक्षात दर्शनों का सुअवसर तीर्थ यात्रियो को प्रदान करती है। अनेकों नामों से विख्यात कैलाश पर्वत मेरु, सुमेरु, हिमाद्रि, रजतगिरी आदि अलंकारों से सुशोभित है तथा एक साथ चार धर्मों (हिंदुओं, बोद्ध, जैन, व तिब्बित के मूल निवासी बाम्प) धर्मावलंबियों द्वारा समान रूप से सपूजित है। सृष्टि निर्माण का मूल केंद्र होने के कारण प्रकृति ने इस क्षेत्र को इतना अनुपम एंव अलौकिक बनाया है कि जो भी मनुष्य एक बार यहाँ की अद्भूत छटा का रसपान कर लेता है, वह बारंबार यहाँ आने का प्रयास करता है।  

तिब्बित क्षेत्र में महायात्रा का आनन्द लेते कैलाशी 

पावन कैलाश मानसरोवर भूमि चीन द्वारा अधिकृत तिब्बित क्षेत्र में आती है। चीनी अधिपत्य से पूर्व प्राचीन काल से ही कैलाश मानसरोवर यात्रा निर्विघ्न सम्पन्न होती आ रही थी। किन्तु सन् 1959 में चीनी काम्यूनिस्ट सरकार ने इस तीर्थ यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारत सरकार के अत्यधिक अनुरोध के कारण 22 वर्ष बाद इस यात्रा पथ को दोबारा तीर्थ यात्रियों के लिए पुनः खोल दिया गया। वर्तमान मे कैलाश मानसरोवर यात्रा पर जाने के लिए तीन मार्ग अधिकृत हैं। 

भारतीय मार्ग (पिथौरागढ़) में तीर्थयात्री   

प्रथम मार्ग में तीर्थयात्री पिथोरागढ़, धारचूला, व लिपुलेख पास होते हुए लगभग 250 किमी का दुर्गम एंव श्रम साध्ये पैदल मार्ग तय कर कैलाश पहुँचते हैं। इस मार्ग की महायात्रा भारत सरकार द्वारा आयोजित होती है जिसमे सम्पूर्ण वर्ष में केवल 800-1000 तीर्थयात्री ही जाते हैं। समुद्र तल से लगभग 15000 फुट की ऊँचाई पर स्थित होने के कारण यहाँ जाने के लिए तीर्थयात्री का सम्पूर्ण रूप से स्वस्थ होना अत्यधिक आवश्यक है। चीन क्षेत्र मे होने के कारण तीर्थ यात्री को पासपोर्ट एंव वीज़ा की आवश्यकता पड़ती है। इस मार्ग की यात्रा एक माह में सम्पन्न होती है एंव लगभग 1,50000 का खर्च आता है जो की यात्री को स्वयं वहन करना पढ़ता है। अभी हाल ही के वर्षों मे भारत सरकार ने सिक्किम के नथुला पास से भी यात्रा आरम्भ की है। इस मार्ग से जाने वाले यात्रियो को पैदल बिल्कुल भी नहीं चलना पड़ता। इस मार्ग से यात्रा करने पर लगभग 1,80000 का खर्च आता है।


पशुपतिनाथ मंदिर (नेपाल)

तृतीय मार्ग नेपाल की राजधानी काठमांडू से कोठारी बार्डर, नयलाम, सागा होते हुए कैलाश की तलहटी तक पहुँचता है। इस मार्ग से प्राइवेट टूर ऑपरेटर तीर्थयात्रियों को बस एंव लैंडकुरुजर जीपों द्वारा बिना पैदल चले 18 दिन मे यात्रा सम्पन्न करवाते हैं। इस मार्ग से यात्रा करने पर लगभग 1,50000 का खर्च आता है तथा यात्रियो की संख्या पर भी कोई प्रतिबंध नहीं है। 

पवित्र मानसरोवर के किनारे पूजार्चना करते श्रद्धालु 

परम सत्य स्वरूप महादेव शिव के निवास स्थान में पहुँच कर एंव मानसरोवर मे स्नान करने मात्र से ही मनुष्य जीते जी ही कई जन्मों के बंधनो से मुक्त हो जाता है और शरीर त्यागने के पश्चात कैलाश निवासी सदाशिव भोलेनाथ के सानिध्ये को प्राप्त करता है। इसलिए इस महायात्रा को सशरीर स्वर्गारोहण का नाम दिया गया है। लोक-लोकान्तर के सृष्टिक्रम को संचालित करने वाले महादेव जिस रजतगिरी कैलाश शिखर पर विराजमान हैं उसके दर्शन मात्र से ही मनुष्य पाप मुक्त हो जाता है। कैलाश मानसरोवर से आए हुए तीर्थयात्रियों का यह अनुभव है कि इस दुर्गम एंव कष्टदायी (आनंददायी) यात्रा को सम्पूर्ण करने के पश्चात शेष जीवन सफर सुगम हो जाता है। 


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