कुम्भकरण के पुत्र को जहाँ मिली मुक्ति : भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग
मन्दिर का पृष्ठ भाग |
मन्दिर का प्रवेश द्वार |
शिवपुराण के अनुसार लंका नरेश रावण के भाई कुम्भकर्ण का भीम नामक एक पुत्र था। भीम अपने पिता कुम्भकर्ण की भाँति ही दुष्ट एंव अत्याचारी राक्षस था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या कर कई प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त कर ली और निरंकुश हो गया। मनुष्यों के साथ-साथ वह देवी -देवताओं को परास्त करने लग गया। देवी-देवताओं के आग्रह करने पर भगवान शिव ने इसी स्थान पर दुष्ट राक्षस भीम का वध किया तथा यहीं ज्योतिर्लिंग रूप में विराजमान हो गए। भीमाशंकर मन्दिर की वास्तुकला नागर शैली एंव नई संरचना का मिला-जुला स्वरुप है।
मन्दिर परिसर का हॉल |
भीमाशंकर बस अड्डे से लगभग 150 मीटर आगे चलकर बायीं ओर नीचे की तरफ सीढ़ियाँ आरम्भ हो जाती हैं। लगभग 400 सीढ़ियों के दोनों ओर दुकानें सजी हुई हैं जिनमें पूजनसामग्री, प्रसाद, खाने-पीने का सामान, बच्चों के खिलोनें इत्यादि का असीम भण्डार देखने को मिलता है। तीर्थयात्रियों को बारिश व धूप से बचाने हेतू सम्पूर्ण मार्ग शेड से ढका हुआ है। सीढ़ियाँ उतरने के उपरान्त तीर्थयात्रियों को सर्वप्रथम मन्दिर के पृष्ठभाग के दर्शन प्राप्त होते हैं। काफी बड़े से प्रांगण को पार कर मन्दिर के मुख्य प्रवेश द्वार तक पहुँचा जाता है। मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही एक बड़ा सा हॉल है जिसमें कई पुजारी यहाँ आने वाले भक्तों को समूहों में बिठाकर पूजार्चना करवाते हैं। यहीं सामने की दीवार पर बड़ी सी स्क्रीन में स्वयंभू भीमाशंकर शिवलिंग के बहुत सुन्दर दर्शन निरन्तर भक्तों को होते रहते हैं। हॉल में से होते हुए 3-4 सीढ़ियाँ नीचे उतरने के पश्चात गर्भगृह में भगवान भीमाशंकर का शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह में केवल 5-7 लोगों के ही खड़े होने की व्यवस्था है। यहाँ पुजारी जी बारी-बारी से भक्तों की मंत्रोच्चारण के साथ पूजार्चना करवाते है। भीमाशंकर मन्दिर के आस-पास अन्य कई पूज्यनीय एंव दर्शनीय स्थल विध्यमान हैं। जिनमें कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं -
मन्दिर परिसर |
साक्षी गणपति मन्दिर - मुख्य मन्दिर से लगभग 2 किमी. दूर इस मन्दिर में गणेश भगवान तीर्थयात्रियों की उपस्थिति के साक्षी माने जाते हैं। इसीलिए भीमाशंकर आने वाले तीर्थयात्री साक्षी गणपति मन्दिर के दर्शन अवश्य करते हैं।
कमलाजा देवी मन्दिर - शिव के साथ शक्ति की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। कमल के सिंघासन पर विराजित माँ गौरा के दर्शन पाकर भक्त धन्य हो जाते है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा, गणेश चतुर्थी, दीपावली एंव महाशिवरात्रि पर यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे बड़ी संख्या में भक्तों का सैलाब उमड़ कर भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करता है।
यहाँ पहुँचने के लिए भक्तों को सर्वप्रथम महाराष्ट्र के पुणे शहर पहुँचना पड़ता है। जहाँ से भक्तजन राजगुरु नगर, मंचर, तालेघर होते हुए लगभग 125 किमी. का मार्ग महाराष्ट्र परिवहन निगम की बस अथवा निजी वाहन द्वारा तय कर सकते हैं। नासिक की तरफ से आने वाले तीर्थयात्रियों को मन्दिर पहुँचने के लिए मंचर, तालेघर होते हुए लगभग 215 किमी. की दूरी तय करनी पड़ती है।
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