Tuesday, 20 March 2018

           जहाँ  है रहस्यमयी कृष्णा बटर बॉल :  महाबलिपुरम 



समुद्र तट मन्दिर 

तमिलनाडू की राजधानी चेन्नई से लगभग 60 किमी. की दूरी पर छोटा सा शहर है, जिसे महाबलिपुरम के नाम से  जाना जाता है।  बंगाल की खाड़ी के समुन्द्र तट पर स्थित होने कारण यह स्थान बहुत ही मनोरम है। प्राचीन काल में मामल्लापुरम अर्थात महान योद्धाओं के क्षेत्र के नाम से विख्यात यह स्थान पल्लव राजाओं की राजधानी हुआ करता था । 7वीं 8वीं  शताब्दी में निर्मित यहाँ  की  शिल्पकला तथा पत्थरों को तराशकर बनाये गए यहाँ  के मन्दिर दक्षिण  भारतीय संस्कृति का  जीता जागता स्वरुप हैं। वर्षभर यहाँ देशी-विदेशी कलाप्रेमी पर्यटकों का मेला लगा रहता है।  समुन्द्र किनारे स्थित समुन्द्र तट मंदिर (sea shore temple) दक्षिण भारत  के सर्वोत्तम प्राचीन मंदिरों की श्रेणी में आता है। द्रविड़ वास्तुकला का नमूना पेश करता यह मन्दिर भगवान विष्णु एंव शिव को  समर्पित है।  मन्दिर से टकराती सागर की लहरें आत्मविभोर कर देती हैं। 

अर्जुन पेनांस 

अर्जुन पेनांस अर्थात गंगा अवतरण - दो विशाल शिलाओं से निर्मित इस शिलाखण्ड का आकर 27 मीटर x 13 मीटर है।  यहाँ तपस्या में लीन पाण्डव पुत्र अर्जुन तथा गंगा अवतरण को पत्थरों पर उकेरकर बड़े ही सुन्दर तरीके  से दर्शाया गया है।


पंच रथ मन्दिर 

पंच रथ मन्दिर - तट मन्दिर से कुछेक किमी. की दूरी पर पंच रथ मन्दिर पाँच पाण्डवों को समर्पित है।  कहा जाता है कि अज्ञातवास के समय द्रोपदी सहित पाँच पाण्डवों ने कुछ समय यहाँ व्यतीत किया था।  


कृष्णा बटर बॉल 

रहयस्यमयी कृष्णा बटर बॉल - सम्पूर्ण विश्व में अनेक ऐसे रहस्यमयी तथ्य हैं जो विज्ञान को चुनोती देते देखे जा सकते हैं।  इसी का एक उदाहरण महाबलिपुरम में देखा जा सकता है। 6 मीटर ऊँचा, 5 मीटर चौड़ा तथा लगभग 250 टन वजनी यह विशालकाय पत्थर 45 डिग्री के कोण पर हजारों वर्षों से ज्यों का त्यों टिका हुआ है। कृष्णा बटर बॉल के  नाम से विख्यात यह अजूबा भौतिक विज्ञान के ग्रेविटी नियमों का उल्लंघन करता  प्रतीत होता है। लोगों की आस्था है कि यह बॉल भगवान श्री कृष्ण  के सर्वोप्रिय भोग मक्खन के रूप में स्वर्ग से गिरी है। यह जानते हुए भी कि सन 1908 में तबके के गवर्नर आर्थर हेवीलॉक के आदेशानुसार 7 हाथियों द्वारा इस पत्थर को हिलाने की नाकाम कोशिश की गयी थी, यहाँ आये पर्यटक इसे हिलाने का प्रयास कर रोमांच का अनुभव करते हैं।  

लाइट हाउस से महाबलिपुरम  विहंगम दृश्य 

लाइट हाउस - समुद्री जहाजों का पथ निर्देशन करने  हेतू बनाये गए इस लाइट हाउस में  यात्री टिकट लेकर ऊपरी तल तक जा सकते हैं।  85 फ़ीट ऊँचे बने इस लाइट हाउस से सम्पूर्ण मामल्लापुरम शहर तथा मीलों फैले समुद्र का दृश्यावलोकन अति लुभावना लगता है। इतनी ऊँचाई से  देखने पर भय एंव रोमांच से शरीर आनन्दित हो उठता है। 


महाबलिपुरम बीच 

क्रोकोडाइल पार्क - महाबलिपुरम से 14 किमी. दूर चेन्नई महाबलिपुरम रोड पर स्थित है मद्रास क्रोकोडाइल बैंक। इसे 1976 में अमेरिका के  रोमुलस विटेकर तथा उनकी पत्नी ने स्थापित किया था। केवल 15 मगरमच्छों से शुरू हुए इस पार्क में आज विभिन्न प्रजातिओं के 5000 से भी अधिक मगरमच्छ संरक्षित हैं।  


दक्षिण भारतीय व्यंजन का लुत्फ़ 

महाबलिपुरम पहुँचने के लिए चेन्नई निकटतम हवाई  अड्डा है। जोकि यहाँ से 60 किमी. दूर है।  रेलमार्ग द्वारा पहुँचने वाले यात्रियों के लिए चेन्गलपटु रेलवे स्टेशन यहाँ से 29 किमी. की दूरी पर स्थित है।  किन्तु अपनी यात्रा को सबसे बेहतरीन एंव रोमांच से भरपूर बनाने के लिए पर्यटकों को ईस्ट कोस्ट रोड अर्थात ECR को ही चुनना चाहिए। बस अथवा निजी वाहन द्वारा समुद्र  के साथ-साथ  चलते हुए अपनी यात्रा को यादगार बनाया जा सकता  है।        










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Sunday, 18 March 2018

                      भगवान शिव को समर्पित : एलिफेंटा केव्स 

महादेव का त्रिमूर्ति स्वरूप 
मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया से लगभग 10 किमी. समुन्द्र के बीच छोटा किन्तु अत्यंत सुन्दर टापू है - धरापुरी, जिसे गुफाओं का टापू भी कहा जाता है। यह अलौकिक स्थान अरब सागर में स्थित है। पुर्तगालियों  ने पहली बार जब इस द्वीप को दूर से  देखा तो उन्हें हाथी अर्थात एलिफैंट की एक  विशाल मूर्ति  दृष्टिगोचर हुई। जिस  कारण उन्होंने इसे एलिफेंटा केव्स का  नाम दे  दिया। पहाड़ी को तराशकर बनाई गई इन गुफाओं को दो समूहों में बाँटा गया है।  एक समूह में पाँच हिंदू गुफाएँ तथा दूसरे समूह में दो बुद्धिस्ट गुफाएँ सम्मिलित हैं। हिन्दू गुफाओं  में भगवान सदाशिव की सुन्दर और विशाल प्रतिमायें बनी हुई हैं। माना जाता है कि इन्हें 5वीं से 8वीं शताब्दी में बनाया गया होगा। 
एलिफेंटा केव्स का विशाल हॉल 

गुफा में एक बड़ा हॉल है जिसमे भगवान शिव की विभिन्न मुद्राओं को मूर्तियों में तराशा गया है। एलिफेंटा केव्स का मुख्य आकर्षण कभी न भुलाई जा सकने वाली भगवान शिव की त्रिमूर्ति है।  जिसमें महादेव कैलाशपति की रचयिता, पालनकर्ता एंव संघारकर्ता की छवि प्रस्तुत की गयी है। यह विशाल मूर्ति 23-24 फ़ीट लंबी तथा 17 फ़ीट ऊँची है। इसके अलावा नटराज,अर्धनारेश्वर, शिव-पार्वती एंव रावण द्वारा कैलाश पर्वत को उठाने का  प्रयास करती प्रतिमाएँ सजीव चित्रण प्रस्तुत करती हैं।
लेखक अपने परिवार के साथ 

सन्न 1987 में यूनेस्को द्वारा एलिफेंटा गुफाओं को विश्व धरोहर घोषित कर दिया गया। जिससे यह गुफाएँ पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो गयी। एलिफेंटा पहुँचने के लिए पर्यटकों को मुंबई के सुप्रसिद्ध गेटवे ऑफ़ इंडिया से हर एक-आध  घंटे में स्टीमर्स मिल जाते हैं। जिसमे आने जाने का किराया 180 रूपए है। लगभग 50 मिनट में स्टीमर समुन्द्र की लहरों के साथ अठखेलियाँ करता हुआ आपको वहाँ पहुँचा देता है।
विश्व धरोहर का प्रवेश द्वार 
तट से एलिफेंटा गुफाएँ लगभग आधा किलोमीटर दूर है। पर्यटक पैदल अथवा टॉय ट्रेन का लुत्फ़ उठाते हुए भी इन गुफाओं तक  पहुँच सकते हैं।  टॉय ट्रेन का लुत्फ़ उठाने के लिए मात्र 10 रूपए की टिकट खरीदनी होती है।  टॉय ट्रेन से उतरकर लगभग 110 सीढियाँ चढ़नी पढ़ती हैं। सीढियाँ चढ़ने में असमर्थ पर्यटकों को यहाँ पालकी उपलब्ध हो जाती है।
टॉय ट्रेन का लुत्फ़ उठाता छोटा सा पर्यटक 
सीढ़ियों के दोनों ओर आस-पास के गाँव वालों ने दुकानें सजाई हुई हैं जोकि उनकी जीविका का साधन है। इन अस्थाई दुकानों में सजे सुन्दर-सुन्दर स्मृति चिन्हों को पर्यटक यादगार के रूप में यहाँ से ले जाते हैं।  समुन्द्र के बीच स्थित होने  के कारण यहाँ की आबोहवा ने इस स्थान को  बेहतरीन पर्यटक स्थल बना दिया है। जनमान्यता है कि पाण्डवों ने इन गुफाओं का निर्माण अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। यह स्थान तीर्थयात्री  एंव पर्यटक दोनों को ही अपनी ओर आकर्षित करता है।  


अरब सागर में तैरता जहाज 
गेटवे ऑफ़ इंडिया से उपलब्ध स्टीमर्स               



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