शनि कृपा से आज भी नहीं लगते दरवाज़ों पर ताले : शनि शिंगणापुर
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शनि शिंगणापुर |
भगवान सूर्य के अतिबलशाली पुत्र शनिदेव मृत्युलोक के ऐसे स्वामी हैं जो मनुष्यों को उनके अच्छे बुरे कर्मों के आधार पर न्याय देते हैं। वैसे तो कर्मों के न्यायधीश शनिदेव सम्पूर्ण भारत में कई जगह विराजमान हैं। किन्तु मथुरा के निकट कोकिला वन एंव महाराष्ट्रा के अहमदनगर के निकट स्थित शिंगणापुर भारत ही नही अपितु विश्व में शनिधाम के नाम से विख्यात हैं। एक दन्त कथा के अनुसार सालों पहले इस गाँव में भयंकर बाढ़ आयी, जिसमें काफी जान माल का नुक्सान होने लगा। बाढ़ के साथ ही एक दिव्य शिला बहती हुई गाँव में आ गयी। अगले दिन एक आदमी को यह शिला पेड़ के ऊपर अटकी दिखी। उसने जब उत्सुकतावश इसे पेड़ से नीचे उतारकर तोड़ने की कोशिश की तो उसमे से रक्त बहने लगा। रक्त निकलता देख वह आदमी घबराकर गाँव की ओर दौड़ा और जाकर जब उसने आपबीती सुनाई तो उसकी बात सुनने वाले सभी लोग उसके साथ उसी स्थान पर गए और शिला को देखकर आश्चर्य में पड़ गए। कुछ भी समझ न आने के कारण ये सोचकर वापिस आ गए कि कल आकर निर्णय लेंगे कि क्या करना चाहिए। रात को शनिदेव ने उस आदमी को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि वह शिला मेरा ही स्वरुप है। उस शिला को गाँव में स्थापित कर पूजार्चना करने से गाँववासी सदैव आपदा से मुक्त रहेंगे। अगली सुबह उस व्यक्ति ने अपना स्वप्न गाँव वालों को सुनाया। सभी की रज़ामंदी से उस दिव्य शिला को गाँव में स्थापित करने निर्णय लिया गया। किन्तु कई लोगों की कोशिश के बावजूद शिला टस से मस न हुई। गाँव वाले अगले दिन कुछ उपाय सोच का दोबारा आने का निश्चय कर वापिस लोट आये। रात में उसी व्यक्ति को फिर से दर्शन देकर शनि देव ने कहा कि यदि कोई मामा भांजा कोशिश करें तो शिला को गाँव तक लाया जा सकता है। अगली प्रातः उसके स्वप्न अनुसार रिश्ते में सगे मामा भांजे से उस शिला को गाँव तक लाया गया और बड़े से मैदान के बीचो बीच ऐसे स्थान पर स्थापित कर दिया गया जहाँ सूर्य की सीधी किरणे पड़ती रहें। आज भी इस पवित्र शिला रुपी शनिदेव की मूर्ति के ऊपर कोई छत या गुंबद नही है। इतने सालों धूप, गर्मी, सर्दी, बारिश झेलने के बावजूद शिला ज्यों की त्यों विराजमान है।
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शनि प्रतिमा |
काले रंग की यह दिव्य प्रतिमा ५ फुट ९ इंच लंबी और १ फुट ६ इंच चौड़ी है। मुख्य गेट से अंदर आते ही बायीं ओर थोड़ा आगे चलकर संगमरमर के चबूतरे पर सूर्यपुत्र शनिदेव शिला रुपी विग्रह में भक्तों को दर्शन देते हैं।चबूतरे के चारों तरफ स्टील की ग्रिल लगा रखी है जिससे मूर्ति को स्पर्श न किया जा सके। शनिदेव को सरसों का तेल अति प्रिय है। इसलिए ग्रिल के समीप ही एक टैंक बनाया गया है। सभी भक्तजन अपने साथ लाए हुए तेल को इस टैंक के ऊपर लगी जाली में डाल देते हैं। विधुत मोटर के द्वारा पाइपलाइन से होते हुए निरन्तर इस तेल से शनिदेव का अभिषेक होता रहता है। शनिदेव की मूर्ति के ठीक सामने ४-५ सीढ़ियाँ चढ़कर एक प्लेटफॉर्म है जहाँ भक्तजन बैठकर पूजार्चना करवा सकते है।
यह गाँव एक और विशेषता के कारण देश-विदेश में प्रसिद्ध है। आपको जान कर हैरानी तथा देखकर निःसंदेह अचम्भा होगा कि यहाँ घरों,होटलों, दुकानों और तो और बैंक तथा डाकघरों में भी ताले नहीं लगाए जाते। यहाँ चोरी का डर किसी को भी छूने नहीं पाता। कहा जाता है कि यदि बाहर से कोई चोर यहाँ आकर चोरी कर भी ले तो वह गाँव से बाहर नहीं जा पाता तथा इसी गाँव में भटकता रह जाता है। कई चोरो ने इस सत्य को स्वीकार भी किया कि चोरी के उपरांत वह इस गाँव से बाहर जाने का रास्ता ही नहीं खोज पाये।
शनि शिंगणापुर देव स्थान अहमदनगर से लगभग 35 किमी., औरंगाबाद से 84 किमी. और शिरडी से 60 किमी. की दूरी पर स्थित है।
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