सूर्य नगरी : जोधपुर
नीली नगरी जोधपुर - पश्चिमी भारत के थार रेगिस्तान की सीमा पर बसा जोधपुर शहर सूर्य नगरी के नाम से विख्यात है। यह स्थान अपने किलों, महलों और उद्यानों से भारतीय एंव विदेशी सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है। सन्न 1459 में राठौर राजा रॉव जोधा ने इस नगरी की स्थापना की थी। तब से अब तक इस शहर में कई बदलाव आये किन्तु कभी भी इसकी संस्कृति एंव सभ्यता को कोई भी आँच नहीं आयी। रणबाँके राठौर की इस भूमि की सदियों पुरानी परम्परा राजपूतों ने आज भी अपनी अगली पीढ़ी के लिए संजो कर रखी है। "नीली नगरी" जोधपुर को देखने के लिए हर वर्ष लाखों पर्यटक यहाँ पहुँचते हैं।
मेहरानगढ़ किला - 15वीं शताब्दी में निर्मित मेहरानगढ़ किला जोधपुर शहर से 125 मीटर की ऊँचाई पर एक टीले पर स्थित है। एक किदवंती के अनुसार मेवाड़ राजाओं के पास एक पहुँचे हुए संत बाबा भुक्खड़ चिड़ियानाथ आये थे और उन्होंने राजा को आदेश दिया कि इस स्थान पर एक किले का निर्माण किया जाए जो कि बाहर से आने वाली फोजों से आपकी रक्षा करेगा। संत के कथनानुसार राजा ने यहाँ एक भव्य किले का निर्माण करवाया। नीचे से किले तक पहुँचने के लिए पर्यटकों की सुविधा हेतू एक पक्की सड़क है और एक लिफ्ट भी लगी हुई है। किले में पहुँचकर पर्यटक सबसे पहले दौलतखाने मे प्रवेश करतें हैं। जहाँ तामझाम ,रजतशाही ,पिंजसखासा आदि पालकियाँ रखी हुई हैं जोकि रानियों एंव राज कुमारो क आने-जाने के काम आती थी। दूसरे कक्ष में मेवाड़ राजाओ द्वारा इस्तेमाल किये हुए अस्त्र शस्त्र पड़े हैं तथा साथ ही एक कमरे में राजस्थान शैली की मिनियेचर पेंटिंग प्रदर्शित की गयी हैं। किले के प्रथम तल पर शीश महल है जिसकी बाई और रानी का पूजा स्थल व् दायीं तरफ नृत्य कक्ष है। इससे ऊपर द्वितीय तल में फूल महल व विश्राम स्थल है। किले की ऊपरी दीवार पर कुछ तोपें लगी हुई हैं जोकि 200-300 वर्ष पुरानी हैं। ऐतिहासिक मेहरानगढ़ किला जोधपुर शहर की जीवित शान के रुप में आज भी मजबूती से अपने देखने वाले सैलानियों के लिए खड़ा है
जसवन्त थड़ा - मेहरानगढ़ किले से 2 किलोमीटर की दूरी पर महाराजा जसवन्त सिंह द्वितीय की याद में सन्न 1899 में इस थड़े का निर्माण कराया गया था। यह थड़ा अदभुत कारीगरी व नक्काशी से परिपूर्ण है। थड़े के सामने एक छोटा सा तालाब है जिसमे शाम के समय जसवन्त थड़े का प्रतिबिम्ब बहुत ही सुन्दर दिखाई है।
मंडोर - मेवाड़ राज्य की प्राचीन राजधानी मंडोर जोधपुर शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर बसा है। स्थानीय निवासियों में यह मंडोर उद्यान के नाम से भी विख्यात है। उद्यान में राठौर राजा राव अजीत सिंह प्रथम एंव जसवन्त सिंह प्रथम की मधुर स्मृति में लाल पत्थर से निर्मित छतरियाँ अपनी अद्भुत कारीगरी व् नक्काशी के लिए प्रसिद्ध हैं। उद्यान के बाई तरफ बड़ी सी चट्टान पर हॉल ऑफ़ हिरों तराशी हुई है जिसमें हिन्दुओं के 33 करोड़ देवी-देवताओं का वास है। सर्वप्रथम यहाँ चट्टान पर राठाओं के कुल देवता भगवान गणेश की सूंदर मूर्ति उत्कृष्ट है। उसके बाद चामुण्डा जी व महिषासुर मर्दानी की भव्य मूर्तियाँ तराशी हुई हैं। उद्यान के कोने मे छोटा सा संग्रहालय है जहाँ मेवाड़ राजाओं की यादगार वस्तुएँ दर्शनार्थ रखी हुई हैं। बाग के दूसरे कोने में एक आधुनिक किन्तु छोटा सा अप्पू घर बच्चों के लिए स्थापित है। जोधपुर वासी व पर्यटक दोनों ही इस उद्यान में आकर अपने आपको प्रफुल्लित महसूस करते हैं।
कैसे पहुँचे - जोधपुर देश के सभी प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। हवाई मार्ग द्वारा भी यहाँ पहुँचा जा सकता है। यह स्थान सम्पूर्ण राजस्थान से सड़क मार्ग द्वारा भी जुड़ा हुआ है।
शहर में घूमने के लिए टैक्सी, ऑटो व् जीप इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
कहाँ ठहरें - जोधपुर शहर में पर्यटकों के ठहरने के लिए हर बजट के होटल उपलब्ध हैं, जिनमे उमेद भवन पैलेस, अजीत भवन पैलेस, राजस्थान टूरिज्म का होटल घूमर, होटल मरुधर इत्यादि उपलब्ध हैं।
क्या खाएँ - पर्यटक जोधपुर शहर की प्रमुख मिर्ची वड़ा व मेवाड़ कचौड़ी खाना कभी नहीं भूलते।
क्या खरीदें - नई सड़क, त्रिपोलिया, लक्कड़ बाजार व घण्टाघर शहर के मुख्य बाजार हैं जहाँ आप चमड़े से निर्मित वस्तुएँ ,पेंटिग, नक्काशी मूर्तियाँ व् जोधपुरी लहंगा चोली खरीद सकते हैं।
कब जाएँ - जोधपुर जाने का उत्तम समय नवम्बर - मार्च के बीच है। उस समय यहाँ का का अधिकतम तापमान 27 डिग्री व न्यूनतम तापमान 9 डिग्री के बीच रहता है।
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